भारत सरकार के रेल मंत्री पवन कुमार बंसल ने अपने पद से भ्रष्टाचार के कारण त्याग पत्र दे दिया हैं।
यह तो समय ही बताएगा की सत्य क्या हैं।
पर एक खबर और सामने आई की ज्योतिषियों की सलाह पर अपना पद बचाने के लिए उन्होंने बकरी की बलि दे दी फिर भी कुर्सी हाथ से चली गई।
मेरे जैसे सभी जिज्ञासु व्यक्तियों के मन में कुछ शंकाओं ने जन्म ले लिया।
समझदार लोग हमारी इन शंकाओं का समाधान कर हम पर कृपा करेगे ऐसा विचार हैं।
१. क्या बकरी, भेड़ आदि की बलि से किसी के सर पर जो विपत्ति होती हैं वह टल जाती हैं? रेलमंत्री के मामले में तो बलि देने के बाद भी उनकी कुर्सी चली गयी।
२. एक निरीह, मूक प्राणी का क्या दोष हैं जिसके लिए उसकी बलि दे दी जाती हैं?
३. क्या बकरी आदि की बलि देने से पाप कर्म नहीं कहा जायेगा? जिसका फल भोगना अनिवार्य हैं।
४. जब कर्म-फल का वैदिक सिद्धांत वेदों में स्पष्ट कहा गया हैं की जो जैसा करेगा वैसा भरेगा तो उसे नकार कर बलि प्रथा, जादू-टोना आदि अन्धविश्वास अज्ञानता के प्रतीक नहीं तो और क्या हैं?
५. जब सोमनाथ, गुजरात के मंदिर पर आक्रमण किया गया तब मंदिर के पूजारियों ने वीर राजपूतों को मुहम्मद गज़नी का सामना करने से यह कहकर मना कर दिया था की मंदिर युद्ध होने से अपवित्र हो जायेगा। मंदिर की रक्षा और शत्रुओं के संहार के लिए भगवान शिव भैरव और नन्दी को भेज देंगे। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ और मंदिर विधर्मियों द्वारा नष्ट कर दिया गया। अन्धविश्वास के कारण हमें इतने दुःख और कष्ट भोगने पड़े हैं फिर भी हम अन्धविश्वास को त्यागने का क्यूँ नाम नहीं लेते।
६. कई बार सुनने में आता हैं की एक तांत्रिक ने एक महिला जिसके पुत्र उत्पन्न पैदा नहीं होता था के लिए दूसरे के पुत्र की बलि दे दी। क्या मर्यादावान समाज में इस प्रकार के अन्धविश्वास के लिए कोई स्थान हैं?
७. हिन्दू समाज के अन्धविश्वास को देखकर अनेक विधर्मी उनका परिहास करने का , निंदा करने का प्रयास करते हैं जिससे अनेक बुद्धिजीवी लोग हिन्दू धर्म को त्यागकर या तो विधर्मी बन जाते हैं अथवा नास्तिक बनकर भोगवादी बन जाते हैं। इससे हिन्दू समाज के बड़े पैमाने पर क्षति हुई हैं और हो रही हैं।
८. समाज में पठित वर्ग एक से बढ़कर एक अन्धविश्वास में लिप्त हैं जिसके कारण उनका अनुसरण करने वाले अपठित वर्ग में यह बीमारी विकराल रूप धारण कर लेती हैं। एक भ्रष्टाचारी अपनी काली कमाई के भय के कारण बढ़ चढ़ कर अन्धविश्वास में भाग लेता हैं। उसकी काले धन से हुई आर्थिक उन्नति को देखकर सामान्य वर्ग इस भ्रम में पड़ जाता हैं की उसकी उन्नति का कारण अन्धिविश्वास के रूप में किया गया कोई कार्य हैं। जबकि सत्य यह हैं की ईमानदारी से किया गया परिश्रम सदा सुख देने वाला हैं।
९. कोई भी अन्धविश्वास विज्ञान के अनुकूल नहीं हैं। फिर इस पाखंड में लिप्त होना अज्ञानता नहीं तो और क्या हैं। वेदों में पशु बलि आदि के विधान के बारे में जो बताया जाता हैं वो असत्य हैं क्यूंकि वेदों में सभी प्राणीयों के साथ मित्र के समान व्यवहार करने का आदेश हैं नाकि उनकी बलि देने का आदेश हैं। मध्य काल में कुछ मांस भोगी अज्ञानी लोगो ने वेद मन्त्रों के गलत अर्थ निकल कर वेदों में बलि प्रथा, माँसाहार और जादू टोन आदि को दर्शाने का असफल प्रयास किया हैं।
१० . मनुष्य के जीवन का उद्देश्य दुखों से छुटना हैं और सुख की प्राप्ति हैं। अन्धविश्वास का केवल और केवल एक ही परिणाम हैं वह हैं दुःख। धर्म की मूल परिभाषा पुरुषार्थ करते हुए जीवन में श्रेष्ठ कार्य करते हुए मोक्ष अर्थात सुख को प्राप्त करना हैं।
आशा हैं की पाठक अन्धविश्वास के विरुद्ध आवाज़ उठायेंगे जिससे अज्ञान का नाश हो और सत्य की स्थापना हो सके।
डॉ विवेक आर्य
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