Wednesday 26 June 2013

बढ़ता वैचारिक प्रदुषण



जल, वायु, ध्वनि आदि का प्रदुषण तो सभी ने सुना हैं परन्तु एक और प्रदुषण हैं जो की इन सभी में सबसे अधिक घातक हैं वह हैं वैचारिक प्रदुषण, बड़े बड़े साम्राज्य, बड़े बड़े राष्ट्र, बड़े बड़े राज्यों को विचार की शक्ति से कलम की तलवार से मिटाया जा सकता हैं, इतिहास इस बात का गवाह हैं। धर्म के नाम पर १९४७ में देश के दो टुकड़े होने के बाद भी भारत देश को हिन्दू राष्ट्र के स्थान पर सेक्युलर देश घोषित किया गया। सभी मतों को अपनी अपनी मान्यताओं को प्रचारित करने की छुट भारतीय संविधान के अनुसार दी गई। धीरे धीरे भारत का राजनैतिक परिवेश तुष्टीकरण की निति का अनुसरण करने लगा। इस सुनियोजित कार्य में सबसे अधिक प्रभावशाली अगर कुछ हैं तो वो हैं कलम की ताकत। इतिहास को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार बदलने से राष्ट्र कि एक पूरी पीढ़ी को अपने सहयोगी के रूप में बिना जोर जबरदस्ती के बदला जा सकता हैं।

इसी कड़ी में हाल ही में तीन पुस्तकों का प्रकाशन हाल ही में हुआ हैं। इन पुस्तकों का विषय ही हमारे इस लेख को लिखने का कारण बना हैं।

१. Mahatma and islam - Faith and Freedom: Gandhi in History

इस पुस्तक में लेखक ने महात्मा गाँधी को इस्लाम का समर्थक घोषित करने का प्रयास किया हैं। महात्मा गाँधी ने अपनी लेखनी से इस्लाम की अनेक स्थानों पर बड़ाई की हैं। उनका सोचने का अपना दृष्टी कौन था। परन्तु जब उनके पुत्र हीरालाल ने हिन्दू धर्म त्याग कर इस्लाम मत को स्वीकार कर लिया था तब वे अत्यंत दुखी हो गए थे और दबी आवाज़ में इस धर्म परिवर्तन की आलोचना कर बैठे थे। इस पुस्तक को लिखने वाले लेखक हिन्दू-मुस्लिम दंगों के समय महात्मा गाँधी द्वारा लिखे गये लेखों को उजागर नहीं करते और केवल इस्लाम की बड़ाई में लिखे गये महात्मा जी की लेखों को संग्रह कर एक तरफ़ा विचार का पोषक कर रहे हैं।

http://www.dailypioneer.com/book-reviews/mahatma-and-islam.html

२. Redefining women in early Islamic history-The story of Khadija

इस पुस्तक में लेखक ने मुहम्मद साहिब की प्रथम बीवी खादीजा के जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया हैं की इस्लाम गणतंत्रता ,सेक्युलरता और नारी जाति को सम्मान देता हैं। ऊपर से देखने पर यह बात बड़ी अच्छी लगती हैं परन्तु जब हम इस्लामिक इतिहास को उठाकर देखते हैं, गैर इस्लामिक मुल्कों और उनके बाशिंदों से उनका व्यवहार देखते हैं तो हमारे विचार बदल जाते हैं। हमें लाखों महिलाओं को गुलाम बनाने, अपने हरम भरने, बलात्कार और कत्ल करने का ऐसा इतिहास दीखता हैं जिससे हम मानवता पर कलंक से ज्यादा कुछ नहीं मान सकते। इससे लेखक का मंतव्य सत्य के विपरीत सिद्ध होता हैं।

http://www.dailypioneer.com/book-reviews/redefining-women-in-early-islamic-history.html
३. Humanity was his religion-The Book Of Nizamuddin Aulia

इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने निजामुद्दीन औलिया को गरीबों का हमदर्द, सेक्युलर, मानवता में शांति का पैगाम और न जाने क्या क्या सिद्ध करने का प्रयास किया हैं। सत्य तो यही हैं की पहले इस्लामिक आक्रान्ता हिन्दू समाज पर घाव देने आते फिर उनके घायल शरीर पर इस्लामिक मलहम लगाने का कार्य सूफी लोग करते। यह सिद्ध हो चूका हैं की सूफी प्रचारकों का मुख्या कार्य इस्लाम को मानने वालो की संख्या को बढ़ाना ही था।

http://www.dailypioneer.com/book-reviews/humanity-was-his-religion.html



ये पुस्तकें तो एक झलक मात्र हैं। इनसे यही सिद्ध होता हैं की इस्लाम का प्रचार करने वाले वैचारिक प्रदूषण से असत्य तथ्यों का मंडन कर रहे हैं। परन्तु सत्य तो सूर्य के समान हैं जो बादलों से कुछ काल के लिए ढक तो सकता हैं मगर कुछ काल के पश्चात वह पहले से भी तेज रूप में अवश्य चमकता हैं।

राष्ट्रवादी लोग अपने तप, स्वाध्याय और श्रम से सत्य का मंडन कर असत्य का खंडन अवश्य करेगे। इस लेख का यही उद्देश्य हैं।

डॉ विवेक आर्य

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