Friday 7 June 2013

क्या भगवत गीता हिंसा को बढ़ावा देने वाला धर्म ग्रन्थ हैं?



सदियों से संसार के सबसे ज्यादा शांतिप्रिय और सहनशील हिन्दू समाज जिसकी मुख्य शक्ति उसकी अध्यात्मिक विचारधारा हैं, जिसके कारण वह आज भी जीवित हैं और संपूर्ण संसार को प्रेरणा दे रही हैं पर निरंतर हमले होते रहे हैं. इसी श्रृंखला में एक ओर नाम रूस के तोम्स्क नामक नगर की अदालत से हिंदुयों के महान ग्रन्थ श्री मदभगवत गीता को उग्रवाद को बढावा देने वाला और कट्टरपंथी होने का फरमान हैं. १९९० के रूस के टुकड़े टुकड़े होने से देश में राजनैतिक उथल पुथल के साथ साथ अध्यात्मिक उथल पुथल भी हुई. एक समय साम्यवाद के नाम पर नास्तिकता को बढ़ावा देने वाले रूस में १९९० के बाद चर्च विशेषरूप से सक्रिय हो गया क्यूंकि उसे लगा की उसे खोई हुई ईसा मसीह की भेड़े दोबारा वापिस मिल जाएगी. इस्कान द्वारा विश्व भर में उनके गुरु प्रभुपाद द्वारा भाष्य करी गयी गीता का रूसी अनुवाद होने के बाद नास्तिक देश रूस में गीता का व्यापक प्रचार हुआ. मांस, वोदका (शराब) और स्वछंद विचारधारा को मानने वाले देश में शाकाहार, मदिरा से परहेज और ब्रहमचर्य का व्यापक प्रचार हुआ. इस प्रचार से हजारों की संख्या में रूसी लोगों ने गीता को अपने जीवन का अध्यात्मिक ग्रन्थ स्वीकार कर उसकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतरा. पहले से ही बदहाल और बंद होकर बिकने के कगार पर चल रहे ईसाई चर्च को चिंता हुई की अगर गीता का प्रभाव इसी प्रकार बढ़ता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पूरे रूस में मसीह का कोई भी नाम लेने वाला न रहेगा. इसलिए एक षडयन्त्र के तहत सुनियोजित तरीके से अदालत में केस दर्ज करवा कर गीता पर प्रतिबन्ध लगाने का प्रयास किया गया. गीता में श्री कृष्ण जी द्वारा अर्जुन को युद्ध भूमि में अपने ही सगे सम्बन्धियों के विरुद्ध युद्ध करने का आवाहन अर्जुन के मोह को दूर कर एक क्षत्रिय के धर्म का पालन कर पापियों अर्थात अधर्म का नाश करने का और धर्म की स्थापना करने का आवाहन किया गया हैं. इसे कोई मुर्ख ही उग्रवादी और कट्टरवादी कहेगा.सोचिये रूस का ही कोई नागरिक देश,जाति और धर्म के विरुद्ध कार्य करेगा तो रूसी संविधान के तहत उसे दंड दिया जायेगा या फिर नहीं दिया जायेगा और अगर कोई उस संविधान को हिंसक, मानवाधिकारों का हनन करने वाला,उग्रवादी और कट्टरवादी कहेगा तो आप उसे मुर्ख नहीं तो और क्या कहेगे. इसी प्रकार गीता में समाज में आचरण और व्यवहार करने का जो वर्णन हैं उसे कट्टरपंथी कहना निश्चित रूप से गलत हैं.



अब जरा गीता को कट्टरपंथी कहने वाले ईसाई समाज की धर्म पुस्तक बाइबल का अवलोकन करे की वह कितनी धर्म सहिष्णु और सेकुलर हैं.

Exodus – निर्गमन ३४.११-१४ में गैर ईसाईयों के साथ व्यवहार करने के बारे में देखिये क्या लिखा हैं

११. जो आज्ञा मैं आज तुम्हें देता हूं उसे तुम लोग मानना। देखो, मैं तुम्हारे आगे से एमोरी, कनानी, हित्ती, परिज्जी, हिब्बी, और यबूसी लोगोंको निकालता हूं।
१२. इसलिथे सावधान रहना कि जिस देश में तू जानेवाला है उसके निवासिक्कों वाचा न बान्धना; कहीं ऐसा न हो कि वह तेरे लिथे फंदा ठहरे।
१३. वरन उनकी वेदियोंको गिरा देना, उनकी लाठोंको तोड़ डालना, और उनकी अशेरा नाम मूतिर्योंको काट डालना;
१४. क्योंकि तुम्हें किसी दूसरे को ईश्वर करके दण्डवत्‌ करने की आज्ञा नहीं, क्योंकि यहोवा जिसका नाम जलनशील है, वह जल उठनेवाला ईश्वर है ही,

गीता में कहीं भी ईश्वर को जलने वाला नहीं लिखा हैं अर्थात द्वेष करने वाले नहीं लिखा हैं.फिर गीता कट्टरवादी धर्म ग्रन्थ कैसे हो सकती हैं.

Leviticus -लैव्यव्यवस्था २६.७-९ में लिखा हैं की जो शत्रु को मरते हैं बाइबल में वर्णित ईश्वर उन पर कृपा दृष्टि रखते हैं.

२६.७ और तुम अपके शत्रुओं को मार भगा दोगे, और वे तुम्हारी तलवार से मारे जाएंगे।
२६.८ और तुम में से पांच मनुष्य सौ को और सौ मनुष्य दस हजार को खदेड़ेंगे; और तुम्हारे शत्रु तलवार से तुम्हारे आगे आगे मारे जाएंगे;
२६.९ और मैं तुम्हारी ओर कृपा दृष्टि रखूंगा और तुम को फलवन्त करूंगा और बढ़ाऊंगा, और तुम्हारे संग अपक्की वाचा को पूर्ण करूंगा।

जब शत्रु को मारने की आज्ञा गीता में भी हैं और बाइबल में भी हैं तो गीता को उग्रवादी धर्म ग्रन्थ कहना अज्ञानता भी हैं और दुष्टता भी हैं.

Deuteronomy – व्यवस्थाविवरण २.३३ में बाइबल वर्णित परमेश्वर द्वारा शत्रु के पुत्रों को सेना समेत मार डालने का वर्णन हैं.

२.३३ और हमारे परमेश्वर यहोवा ने उसको हमारे द्वारा हरा दिया, और हम ने उसको पुत्रोंऔर सारी सेना समेत मार डाला।

क्या इसे आप बाइबल में हिंसा नहीं कहेंगे?

Genesis – -उत्पत्ति ११.५-७ में बाइबल वर्णित ईश्वर को भाषा की गड़बड़ी करने वाला बताया गया हैं.

११.५ जब लोग नगर और गुम्मट बनाने लगे; तब इन्हें देखने के लिथे यहोवा उतर आया।
११.६ और यहोवा ने कहा, मैं क्या देखता हूं, कि सब एक ही दल के हैं और भाषा भी उन सब की एक ही है, और उन्होंने ऐसा ही काम भी आरम्भ किया; और अब जितना वे करने का यत्न करेंगे, उस में से कुछ उनके लिथे अनहोना न होगा।
११.७ इसलिये आओ, हम उतर के उनकी भाषा में बड़ी गड़बड़ी डालें, कि वे एक दूसरे की बोली को न समझ सकें।

ईश्वर पर ऐसा दोष लगाने वाली पुस्तक बाइबल को क्या आप धर्म पुस्तक कहना पसंद करेगे?

Numbers – गिनती १२.९,१० में बाइबल के ईश्वर को रोग उत्पन्न करने वाला बताया गया हैं.

१२.९ तब यहोवा का कोप उन पर भड़का, और वह चला गया;
१२.१० तब वह बादल तम्बू के ऊपर से उठ गया, और मरियम कोढ़ से हिम के समान श्वेत हो गई। और हारून ने मरियम की ओर दृष्टि की, और देखा, कि वह कोढ़िन हो गई है।

कोई मुर्ख ही इस बात पर विश्वास करेगा को संसार में रोगों की उत्पत्ति का कारण ईश्वर हैं.

इस प्रकार की अनेक दोषपूर्ण, मुर्खतापूर्ण,अविवेकी,कट्टरवादी और उग्रवादी विचार धारा को मानने वाले इसाई मत की धर्म पुस्तक बाइबल को कोर्ट द्वारा धार्मिक सद्भावना और भाई चारे के वातावरण को नष्ट करने वाली कहना श्रेयकर होगा.संसार के बुद्धिजीवी वर्ग को एकजूट होकर इस प्रकार की सभी धर्म पुस्तकों पर पाबन्दी लगा देनी चाहिए न की गीता पर पाबन्दी लगनी चाहिए.और साथ ही साथ हिंदुयों के शत्रु यह भी याद रखे की



‘एक कहावत हैं जिनके घर शीशे के होते हैं वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकते’

बाइबल के विषय में अधिक जानकारी के लिए Michael d, Souza से अरुण आर्यवीर बने आर्यजन द्वारा अपने जीवन पर लिखित पुस्तक इस पते पर पढ़ सकते हैं.

http://www.scribd.com/fullscreen/37705117

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