(रामनवमी के अवसर पर प्रकाशित)
लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द ।
सब फ़ल्सफ़ी हैं खित्ता-ए-मग़रिब के रामे हिन्द ।।
ये हिन्दियों के फिक्रे-फ़लक उसका है असर,
रिफ़अत में आस्माँ से भी ऊँचा है बामे-हिन्द ।
इस देश में हुए हैं हज़ारों मलक सरिश्त,
मशहूर जिसके दम से है दुनिया में नामे-हिन्द ।
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़,
अहले-नज़र समझते हैं उसको इमामे-हिन्द ।
एजाज़ इस चिराग़े-हिदायत का है ,
यहीरोशन तिराज़ सहर ज़माने में शामे-हिन्द ।
तलवार का धनी था, शुजाअत में फ़र्द था,
पाकीज़गी में, जोशे-मुहब्बत में फ़र्द था ।
अल्लामा इकबाल
शब्दार्थ :लबरेज़ है शराबे-हक़ीक़त से जामे-हिन्द । सब फ़ल्सफ़ी हैं खित्ता-ए-मग़रिब के रामे हिन्द ।।= हिन्द का प्याला सत्य की मदिरा से छलक रहा है। पूरब के सभी महान चिंतक इहंद के राम हैं; फिक्रे-फ़लक=महान चिंतन; रिफ़अत=ऊँचाई; बामे-हिन्द=हिन्दी का गौरव या ज्ञान; मलक=देवता; सरिश्त=ऊँचे आसन पर; एजाज़=चमत्कार; चिराग़े-हिदायत=ज्ञान का दीपक; सहर=भरपूर रोशनी वाला सवेरा; शुजाअत=वीरता; फ़र्द=एकमात्र, अद्वितीय; पाकीज़गी= पवित्रता
अल्लामा इकबाल सियालकोट, पंजाब, ब्रिटिश भारत में पैदा हुआ था, एक कश्मीरी शेख परिवार में पांच भाई बहन की सबसे बड़ी इकबाल पिता शेख नूर मुहम्मद एक समृद्ध दर्जी, अच्छी तरह से अपने इस्लाम को मजबूत भक्ति, और के लिए जाना जाता था. परिवार गहरी धार्मिक ग्राउंडिंग के साथ अपने बच्चों को उठाया. अपने दादा सहज राम सप्रू श्रीनगर जो अपने परिवार के साथ इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया से एक कश्मीरी पंडित था, इस प्रक्रिया में शेख मुहम्मद रफीक के मुस्लिम नाम अपनाया. रूपांतरण के बाद, वह पंजाब के सियालकोट पश्चिम में अपने परिवार के साथ चले गए। अपनी प्रारंभिक उम्र में इकबाल के विचार सेक्युलर थे। कभी उन्होंने ही सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा गीत लिखा था और अपने शेष जीवन में उन पर इस्लाम का ऐसा रंग चढ़ा की जिन्ना को पाकिस्तान का पाठ पढ़ाने वालो में इकबाल का नाम सबसे ऊपर हैं।
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