Sunday 2 June 2013

निर्मल बाबा अथवा पॉल दिनाकरन अथवा अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज़- चमत्कारी अथवा ढोंगी



डॉ विवेक आर्य
पाखंड खंडन
आधुनिक समाज में मनुष्य जाति में धन धान्य रुपी प्रगति के साथ साथ मानसिक अशांति,भय,अशक्त भावों का बढ़ना,नैतिक एवं चारित्रिक मूल्यों का हनन भी बड़े पैमाने पर हुआ हैं. इसका मुख्य कारण मनुष्य का अध्यात्मिक उन्नति में प्रगति न होना एवं भोगवाद में लिप्त होना हैं. आज का मनुष्य किसी भी प्रकार से अमीर होना चाहता हैं इसके लिए उसे चाहे कितने भी गलत कार्य करने पड़े, चाहे भ्रष्टाचार में लिप्त होना पड़े, चाहे किसी भी सीमा तक जाना पड़े पर धन कमाना ही जीवन का मूल उद्देश्य बन गया हैं. इसी अंधी दौड़ का एक दुष्प्रभाव (side effect) अन्धविश्वास हैं. जो लोग किसी भी प्रकार से भौतिक उन्नति कर लेते हैं वे इस भय से अन्धविश्वास में लिप्त हो जाते हैं की उनकी भौतिक उन्नति बनी रहे और कुछ लोग उनकी भौतिक उन्नति से प्रभावित होकर उनके द्वारा किये गए अन्धविश्वास की नक़ल करते हैं जिससे उनका भला हो. इस अंधी दौड़ का एक उदहारण आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्य मंत्री दिवंगत श्री रेड्डी का हैं. उनके द्वारा करी गयी राजनैतिक एवं आर्थिक उन्नति का श्रेय उनका धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनना बताया गया था.उनके इस धर्म परिवर्तन से रेड्डी समाज में व्यापक स्तर पर धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनने की होड़ ही लग गयी थी. उनकी अकस्मात् मृत्यु से उन सभी अंधभक्तो को बड़ा धक्का लगा, कई सौं के मन में इतनी घोर निराशा उत्पन्न हुई की उन्होंने आत्म हत्या तक कर ली.उन्हें लगा की उनके जीवन का उद्देश्य ही खत्म हो गया.
आधुनिक मीडिया का सहारा लेकर मार्केटिंग करने वाले निर्मल बाबा का नाम आजकल खासी चर्चा में हैं. किसी को समोसे की चटनी खिलाकर , किसी को काले रंग का नया पर्स खरीद्वाकर, किसी को गोल गप्पे खाने का प्रलोभन देकर आप जीवन की कठिनाइयों का समाधान बता रहे हैं, इस प्रकार के समाधान बताने के लिए निर्मल बाबा अपनी तीसरी आंख (Third eye) का प्रयोग करते हैं और उसी के प्रभाव से ऐसे ऐसे समाधान करते हैं. उनसे सवाल पूछने के लिए दर्शकों को कई कई हज़ार की महंगी टिकेट खरीदनी पड़ती हैं. हद तो तब हो गयी जब उन्होंने एक दर्शक से पूछा की शराब पीते हो उसने कहाँ की हाँ, जाओ जाकर काल भैरव को दो बोतल अर्पित कर दो और दो खुद पी लो कल्याण हो जायेगा ,कृपा बरसेगी. मीडिया का सहारा लेकर अपनी दुकानदारी चमकाने वाले निर्मल बाबा की दुकानदारी को सबसे बड़ी चोट भी खुद मीडिया ने उनके ऊपर खबरे प्रसारित कर लगाई हैं.कुछ हिन्दुत्व के ठेकेदारों ने निर्मल बाबा पर मीडिया की प्रतिक्रिया को गैर हिन्दू मीडिया द्वारा हिन्दू बाबा को निशाना बनाना बताया हैं जबकि सत्य यह हैं की निर्मल बाबा हिन्दू समाज में फैली हुए अन्धविश्वास का ही एक पहलु हैं. अभी तक जितने भी बाबा अपने आशीर्वाद से ,भभूती से,रुद्राक्ष की माला से, बाबा के नामस्मरण से, व्रत आदि से, मंत्र तंत्र से, पशु बलि अथवा नरबली से,बाबा के चित्र, माला आदि से चमत्कार का होना बताते थे निर्मल बाबा से इस चमत्कारी रुपी बाज़ार में सबसे आसान, सबसे जल्दी पूरा होने वाला, सबसे कम परिश्रमवाला तरीका अपनाकर अपनी दुकान मीडिया के कन्धों पर खड़ी करी जिससे उन्हें इतनी अत्यधिक सफलता मिली की धन की वर्षा उनके भक्तों पर हुई हो न हुई हो पर उन पर अवश्य हो गयी. आगे निर्मल बाबा कृपा बरसने पर दसबंध के आधार पर अपनी कमी का १०% दान देने को भी कहते हैं. निर्मल बाबा सबसे अधिक संदेह के खेरे में इसलिए हैं क्यूंकि वे खुद एक असफल व्यापारी रह चुके हैं और अब लोगो का भला करने का दावा करते हैं.
आगे ईसाई समाज से सम्बंधित पॉल दिनाकरन का वर्णन करते हैं.मुझे करीब ९ वर्ष पहले कोयम्बतूर तमिलनाडू में इनकी सभा में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ था. जहाँ पर यह प्रचारित किया जा रहा था की पॉल दिनाकरन महोदय सीधे प्रभु यीशु मसीह से बातचीत हैं और उनके प्रताप से जो भी “जीसस काल्स” के नाम से उनकी प्रार्थना सभा में भाग लेगा उसके सभी दुःख दूर हो जायेगे, सभी के बिगड़े काम बन जायेगे, रोगी निरोगी बन जायेगे, बेरोजगारों को नौकरी मिल जाएगी आदि आदि .प्रभु जीसस उन सभी पर कृपा करते हैं जो उन पर विश्वास लाते हैं. पॉल महोदय भी निर्मल बाबा की तरह अपने प्रोग्रामों में निर्धारित फीस लेते हैं और उस व्यक्ति पर कृपा बरस जाने पर उसे जो फायदा होता हैं उसका १०% उन्हें दान में देने की अपील करते हैं. पॉल महोदय से हमारे कुछ प्रश्न हैं.
आपके अनुसार अगर ईसाइयत में विश्वास लाने वाले की काया पलट हो सकती हैं तो अफ्रीका महाद्वीप में जहाँ पर उत्तर और पश्चिमी अफ्रीका को छोड़कर मध्य, पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका मुख्यत: ईसाई मत को मानने वालो में से विश्व के सबसे निर्धन कुछ देश क्यूँ हैं? ईसाई मत के कई सौं वर्षों के प्रचार के बावजूद उनकी प्रगति का न होना संदेह के घेरे में लाता हैं.सबसे अधिक संदेह में प्रार्थना से चंगाई हैं. प्रभु जीसस और प्रार्थना से चंगाई में विश्वास रखने वाली मदर टेरेसा खुद विदेश जाकर तीन बार आँखों एवं दिल की शल्य चिकित्सा करवा चुकी थी. क्या उनको प्रभु ईशु अथवा अन्य ईसाई संतो की प्रार्थना कर चंगा होने का विश्वास नहीं था?दिवंगत पोप जॉन पॉल स्वयं पार्किन्सन रोग से पीड़ित थे और चलने फिरने में भी असमर्थ थे. उन पर किसी भी ईसाई संत की प्रार्थना से कृपा नहीं हुई.जब ईसाई मत के दो सबसे बड़े सदस्यों पर जिन्होंने पूरा जीवन ईसाई मत को समर्पित कर दिया पर प्रार्थना से चंगाई न हुई तो आम जनता का क्या भला होगा इसलिए प्रार्थना से चंगाई अन्धविश्वास के अलावा कुछ भी नहीं हैं. यह प्रपंच केवल और केवल धर्म भीरु हिन्दू जनता को मुर्ख बनाकर, अन्धविश्वास में रखकर उनका धर्मांतरण करने का षडयन्त्र हैं.
आगे अजमेर स्थित ख्वाजा मुइनुद्दीन चिस्ती जिन्हें गरीब नवाज़ भी कहा जाता हैं का वर्णन करते हैं. तमाम फिल्मी हस्तियाँ और क्रिकेट सितारों ने तो एक फैशन सा ही बना लिया हैं की किसी भी फ़िल्म के रिलीज़ होने से पहले अथवा क्रिकेट टूर्नामेंट से पहले वे अजमेर स्थित गरीब नवाज़ की दरगाह पर जाकर मन्नत मांगते हैं. उनका मानना हैं की केवल एक खवाजा ही हैं जोकि उनके जीवन में आने वाली सभी परेशानियों को दूर कर सकते हैं और उन्हें सफलता दिला सकते हैं. चुकी चहेते फिल्मकार और सितारे जाते हैं तो हिन्दू समाज के सदस्यों में भी एक भेड़ चाल शुरू हो गयी हैं की हम भी चले हमारा भी भला होगा.वे सबसे पहले तो यह तक नहीं जानते की ख्वाजा भारत के अंतिम हिन्दू राजा पृथ्वीराज चौहान को इस्लामिक सेना से हराने की भविष्यवाणी करने वाला सबसे पहला व्यक्ति था और भारत पर हमला कर लाखों हिन्दुओं को मारने वाले, सैकड़ों हिन्दू मंदिरों को नष्ट करने वाले, लाखों को इस्लाम ग्रहण करवाने वाले मुहम्मद गौरी का अध्यात्मिक गुरु और मार्ग दर्शक भी था.ऐसे व्यक्ति की कब्र पर हिन्दू समाज माथा टेककर अपने परिवार की भलाई मांगता हैं, अपनी बच्चों की खुशहाली मांगता हैं. अन्धविश्वास की ऐसी पराकाष्ठा आपको शायद ही विश्व में कहीं और देखने और सुनने को मिलेगी.
निर्मल बाबा अथवा पॉल दिनाकरन अथवा अजमेर के ख्वाजा गरीब नवाज़ हो अथवा इनके समान और कोई भी हो जो भी चमत्कार से, किसी भी प्रकार के शोर्ट कट (short cut ) से आपकी समस्या का समाधान करने का दावा करता हो तो वह चमत्कारी नहीं अपितु ढोंगी हैं क्यूंकि कर्म फल के अटूट सिद्धांत से आज तक कोई भी नहीं बच सका हैं.जो जैसा बोयेगा वैसा ही काटेगा. अगर किसी भी व्यक्ति को जीवन में अत्यंत छोटे समय में आशा से अधिक सफलता मिलती हैं तो उसमे उसके पूर्वजन्मों में किये गए कर्मों का प्रभाव हैं और अगर किसी को श्रम करने का बावजूद सफलता नहीं मिलती तो भी इसमें पूर्वजन्मों में किये गए कर्मों का ही प्रभाव हैं. इसलिए धैर्य रखे और इस अन्धविश्वास की दुकान से बचे और इस जन्म में उचित कर्म करते रहे उसका फल निशित रूप से कल्याणकारी ही होगा. एक और बात कहना चाहूँगा की निर्मल बाबा जैसे व्यक्ति केवल अपनी जेब भरने के लिए अंधविश्वास का सहारा लेते हैं जबकि विधर्मी लोग अपनी जेब भरने के साथ हिन्दू समाज में चमत्कार का प्रचार धर्म परिवर्तन के लिए भी करते हैं.
                                   

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