डॉ विवेक आर्य
पाखंड खंडन
हिन्दू समाज सदा से शांति प्रिय समाज रहा हैं. विश्व इतिहास इस बात का प्रबल प्रमाण हैं, मुस्लिम समाज ने जहाँ तलवार के बल पर हिन्दुओं को इस्लाम में शामिल करने की कोशिश करी थी , अब सूफियो की कब्रों पर हिन्दू शीश झुकाकर या लव जिहाद या ज्यादा बच्चे बनाकर भारत की सम्पन्नता और अखंडता को चुनोती देने की कोशिश कर रहे हैं, वही ईसाई हिन्दुओ को येशु की भेड़ बनाने के लिए पैसे से, नौकरी से, शिक्षा से अथवा प्रार्थना से चंगाई के पाखंड का तरीका अपना रहे हैं.
सबसे पहले ईसाई समाज अपने किसी व्यक्ति को संत घोषित करके उसमे चमत्कार की शक्ति होने का दावा करते हैं. चूँकि विदेशो में ईसाई चर्च बंद होकर बिकने लगे हैं और भोगवाद की लहर में ईसाई मत मृतप्राय हो गया हैं इसलिए भारत के हिन्दुओं से ईसाई धर्म की रक्षा का एक सुनहरा सपना वेटिकन के पोप द्वारा देखा गया हैं. इसी श्रृंखला में सोची समझी रणनीति के तहत भारत से दो हस्तियों को नन से संत का दर्जा दिया गया हैं पहले मदर टेरेसा और बाद में सिस्टर अलफोंसो को संत बनाया गया. दोनों के लिए किसी गरीब को जिसके पास इलाज करवाने के लिए पैसे नहीं थे , जो की बेसहारा थी, उनको दर्शाया गया की प्रार्थना से उनकी चंगाई हो गयी और वे ठीक हो गए, यह एक संत के चमत्कार से हुआ इसलिए प्रभु येशु का धन्यवाद करना चाहिए और ईसाइयत को स्वीकार करना चाहिए क्योंकि पगान देवता जैसे राम और कृष्ण में चंगाई की शक्ति नहीं हैं नहीं तो आप अभी तक ठीक हो गए होते.
मदर टेरेसा , दया की मूर्ति, कोलकाता के सभी गरीबो को भोजन देने वाली, सभी बेसहारा बच्चो को आश्रय देने वाली, जिसने अपने देश को छोड़ कर भारत के गटरों से निर्धनों को सहारा दिया ऐसी हस्ती जो की नोबेल पुरस्कार विजेता हैं एक नन से संत बना दी गयी की उनकी हकीकत से कम ही लोग वाकिफ हैं. जब मोरारजी देसाई की सरकार में धर्मांतरण के विरुद्ध बिल पेश हुआ तो इन्ही मदर टेरेसा ने प्रधान मंत्री को पत्र लिख कर कहाँ था की ईसाई समाज सभी समाज सेवा की गतिविधिया जैसे की शिक्षा, रोजगार , अनाथालय आदि को बंद कर देगा अगर उन्हें अपने ईसाई मत का प्रचार करने से रोका गया. तब प्रधान मंत्री देसाई ने कहाँ था इसका मतलब ईसाई मत द्वारा की जा रही समाज सेवा एक दिखावा भर हैं उनका असली प्रयोजन तो धर्मान्तरण हैं.
यही मदर टेरेसा दिल्ली में दलित ईसाईयों के लिए आरक्षण की हिमायत करने के लिए धरने पर बैठी थी.प्रार्थना से चंगाई में विश्वास रखने वाली मदर टेरेसा खुद विदेश जाकर तीन बार आँखों एवं दिल की शल्य चिकित्सा करवा चुकी थी. क्या उनको प्रभु इशु अथवा अन्य ईसाई संतो की प्रार्थना कर चंगा होने का विश्वास नहीं था?
आगे सिस्टर अलफोंसो की बात करते हैं वे जीवन भर करीब २० वर्ष तक स्वयं अनेक रोगों से ग्रस्त रही . उन्हें भी संत का दर्जा दे दिया गया. और यह प्रचारित कर दिया गया की उनकी प्रार्थना से भी चंगाई हो जाती हैं.
यह सब प्रचारित करने वाले पोप जॉन पॉल स्वयं पार्किन्सन रोग से पीड़ित थे और चलने फिरने में भी असमर्थ थे. उन्होंने भी इन दोनों संतो की पनाह नहीं ली. क्या उन्हें इन संतो द्वारा प्रार्थना करने से चंगाई होने पर विश्वास नहीं था?
इस लेख का मुख्या उद्देश्य आपस में वैमनस्य फैलाना नहीं हैं बल्कि पाखंड खंडन हैं .
ईसाई समाज को जो अपने आपको पढ़ा लिखा समाज समझता हैं इस प्रकार के पाखंड में विश्वास रखता हैं यह बड़ी विडम्बना हैं.
सत्य यह हैं की प्रार्थना से चंगाई एक मुर्ख बनाने का तरीका हैं जो की केवल और केवल हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करने का तरीका हैं.
मेरा सभी हिन्दू भाइयों से अनुरोध हैं की ईसाई समाज के इस कुत्सित तरीके की पोल खोल कर हिन्दू समाज की रक्षा करे.
और सबसे आवश्यक अगर किसी गरीब हिन्दू को ईलाज के लिए मदद की जरुरत हो तो उसकी धन आदि से अवश्य सहयोग करे जिससे वह ईसाईयों से बचा रहे.
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