Friday 7 June 2013

गोवा के सेंट? फ्रांसिस जेविअर (Saint Francis Xavier) एवं हिन्दू अन्धविश्वास



(हर वर्ष आज के दिन ३ दिसम्बर को सेंट फ्रांसिस जेविअर का सामूहिक भोज (Big Feast) का आयोजन किया जाता हैं जिसमे हिन्दू लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं.अन्धविश्वास के विरुद्ध यह लेख हिन्दू समाज को अनभिज्ञ तथ्यों के विषय में सूचित करने लिए प्रकाशित किया गया हैं. इस लेख का उद्देश्य आपसी वैमनस्य को फैलाना नहीं हैं अपितु पाखंड का खंडन करना हैं)

पाखंड खंडन

डॉ विवेक आर्य

१७ वी शताब्दी भारत में रहने वाले बहुसंख्यक हिंदुयों? के लिए अत्यंत दुष्कर काल था जब अल्पसंख्यक? कहलाने वाले मुसलमानों और ईसाईयों ने साक्षात् कहर हिंदुयों पर दहाया था. सदी के पहले भाग में जहाँ ईसाई मत का प्रचार करने वाले सेंट? फ्रांसिस जेविअर ने हिंदुयों को धर्मान्तरित करने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाने से कोई परहेज नहीं किया था वही सदी के दुसरे भाग में औरेंग्जेब रुपी साक्षात् शैतान हिंदुयों को इस्लाम में दीक्षित कर अलमगीर बनने के लिए तत्पर था.

फ्रांसिस जेविअर के अपने ही शब्दों में ब्रह्माण उसके सबसे बड़े शत्रु थे क्यूंकि वे उन्हें धर्मांतरण करने में सबसे बड़ी रुकावट थे.हिंदुयों को ईसाई बनाते समय उनके पूजा स्थलों को,उनकी मूर्तियों को तोड़ने में उसे अत्यंत प्रसन्नता होती थी.हजारों हिंदुयों को डरा धमका कर, अनेकों को मार कर,अनेकों की संपत्ति जब्त कर, अनेकों को राज्य से निष्कासित कर अथवा जेलों में डाल कर ईसा मसीह के भेड़ों की संख्या बड़ाने के बदले फ्रांसिस जेविअर को ईसाई समाज ने संत की उपाधि से नवाजा था और जिस किसी को संत के उपाधि दी जाती हैं उसके बारे में यह प्रचलित कर दिया जाता हैं की उसके नाम की विशेष प्रार्थना करने से रोगी स्वस्थ हो जाते हैं, व्यापार में वृद्धि हो जाती हैं, पढाई में छात्रों के अधिक अंक आते हैं, बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता हैं.एक दो व्यक्तियों की ऐसी चमत्कारी किस्से कहानियां प्रचलित कर दी जाती हैं जिससे धर्म भीरु जनता का विश्वास फ्रांसिस जेविअर के संत होने पर जम जाये और दुकान चल निकले.

३ दिसंबर १५५२ (1552-12-03) को ४६ वर्ष की अवस्था में शांग्चुआन द्वीप, चीन में फ्रांसिस जेविअर का स्वर्गवास हुआ , उसके मृत शरीर को चीन में न दफना कर भारत की पवित्र मट्टी में लाकर रख दिया गया ताकि वर्ष भर उसे देखने वालों का मेला लगा रहे और अच्छी कमाई हो.साथ में चमत्कार की दुकान भी सजी रहे जिससे ईसाई लोग हिन्दू धर्मांतरण को बढावा दे सके.

मेरा इस लेख को पड़ने वाले सभी हिन्दुओं से कुछ प्रश्न हैं

१. जिस व्यक्ति ने हजारों हिंदुयों को मौत के घाट उतर दिया क्या वो संत हो सकता हैं ?

२. क्या किसी देश में उसमे रहने वाले बहुसंख्यक लोगों के शत्रु को सम्मान की दृष्टी से देखा जाता हैं?

३. क्या ऐसे शत्रु के मृत शरीर को चमत्कारी समझ कर उसके दर्शन करने से किसी का भी कल्याण हो सकता हैं?

४.क्या हिंदुयों को अपने देवी-देवताओं पर अविश्वास हो गया हैं जो उन्हें दूसरों की तरफ देखना पड़ रहा हैं?

५.क्या जबरन हिंदुयों से ईसाई बनाये गए हमारे भाइयों को वापिस नहीं लाया जा सकता हैं?

६. हिन्दू समाज कब अपने अंधविश्वासों को छोड़ कर एक जुट हो अपने देश, धर्मऔर जाति पर आये हुए संकटों को समझेगा और उनका सामना करेगा?

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