Saturday, 1 June 2013

पुनर्जन्म या आगमन क्यों आवश्यक हैं?

प्रातःकाल उद्यान में भ्रमण करते हुए आर्यजी और मौलाना साहब की भेंट हो गई। आर्य जी युनिवर्सिटी में प्राध्यापक थे व मौलाना साहब स्थानीय मस्जिद के इमाम। दोनों अच्छे मित्र थे। वार्तालाप करते हुए मौलाना साहब लाहौर स्थित मस्जिद पर आतंकवादी हमले का जिक्र कर बैठे तो आर्य जी बोले- मौलाना साहिब, निश्चित रूप से ये दरिंदे अगले जन्म में पशु बनेंगे।
मौलाना साहब: इस्लाम के अनुसार तो ये दोजख यानि नरक की आग में जलेंगे।
आर्य: मौलाना साहब, जरा ये तो बतायें कि यह दोजख कहाँ पर है !
मौ0 सा0: यह तो अल्लाह ही जानता है, पर इतना जरूर है कि बुरे काम करने वाला दोजख में जाता है।
आर्य: हमारे आसपास जो कुत्ता-सुअर आदि पशु हैं वे नरक का जीवन ही तो जी रहे हैं। जो जन्म से लंगड़े-लूले-अपाहिज हैं देखो उनका जीवन कितना कष्टदायक है! एक टूटी झोपड़ी में रहने वाले गरीब की तुलना अगर बंगलों में रहने वाले सेठ से की जाये तो पिछले जन्म में किये गये पापों का फल मिलना प्रत्यक्ष होता है।
मौ0सा0: परन्तु इस्लाम के अनुसार तो पुनर्जन्म होता ही नहीं है। अगर होता तो हमें पिछले जन्म की बात जरूर याद रहती– और किसी का अपाहिज या गरीब होना तो एक प्रकार से अल्लाह द्वारा उनकी परीक्षा लेना है कि विकट परिस्थितियों में वे अल्लाह ताला के ऊपर विश्वास बनाये रखते हैं और अपने आपको सच्चा मुसलमान साबित करते हैं या नहीं।
आर्य: अच्छा मौलाना जी जरा ये तो बताईए कि आप अपनी माता के गर्भ में नौ माह रहे थे। क्या आपको याद है? क्या अपने जन्म से लेकर पाँच वर्ष तक की आयु में किये गये कार्य आपको याद हैं? क्या आपरेशन के दौरान बेहोश किए गए मरीज को यह याद रहता है कि उसकी चिकित्सा किस प्रकार की गई थी? कभी बुढ़ापे में याददाश्त खो जाने पर व्यक्ति की इस जन्म की स्मृतियाँ तक लोप हो जाती हैं तो हमें पूर्वजन्मों की स्मृतियाँ किस प्रकार स्मरण रहेंगी? आगे अगर सभी व्यक्तियों को पूर्वजन्म का स्मरण हो जाये तो सांसारिक व्यवस्था भी अव्यवस्थित हो जायेंगी क्योंकि अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु दुर्घटना अथवा कत्ल से हुई होगी इस जन्म में वह किस प्रकार अपने सामाजिक संबंधों को बनाए रखेगा? इसलिए जिस प्रकार पानी को देखकर वर्षा का, कार्य को देखकर कारण का विद्वान लोग अनुमान लगा लेते हैं उसी प्रकार जन्मजात बिमारियों को देखकर पूर्वजन्म में किये गये कर्मों का अनुमान हो जाता है।
मौ0सा0: आपकी बातों में दम तो है पर अल्लाह द्वारा परीक्षा लेने वाली बात में क्या बुराई है?
आर्य: ईश्वर को न्यायकारी कहा गया है। वह यूँ ही नहीं एक आत्मा को मनुष्य के शरीर से निकालकर सूअर आदि पशु के शरीर में प्रविष्ठ करा देते हैं। अगर ऐसा करने लगे तो ईश्वर की न्यायकारिता पर संशय उत्पन्न हो जायेगा। किसी मनुष्य ने चोरी नहीं की पर उसे कारागार में डाल दिया जाये, किसी मनुष्य ने पाप नहीं किया और उसकी आंखें निकाल ली जायें या उसे अपाहिज बना दिया जाये और उसे कहा जाये कि ऐसा तुम्हारी परीक्षा के लिए किया जा रहा है तो उसे अत्याचार ही कहा जायेगा। आप बताईये अगर आपको किसी दूसरे द्वारा किये गये कत्ल की सजा में आजीवन कारावास का दण्ड दिया जाये तो आप उसे परीक्षा कहेंगे या अत्याचार? अल्लाह या ईश्वर सर्वज्ञ हैं अर्थात् सब कुछ जानने वाला हैं तो क्या वह अपने द्वारा ली जाने वाली परीक्षा का परिणाम नहीं जानता है?
मौ0 सा0: बिल्कुल सही। इसी प्रकार ईश्वर भी न्यायकारी तभी कहलायेगा जब वह सज्जनों को सत्कार व दुर्जनो को दण्ड देगा। इसलिए जन्मजात बिमारियों में फंसे हुओं को देखकर इस बात का अनुमान लगाना सहज है कि ये पूर्वजन्म में किये गये पापों का फल है।
मौ0सा0: क्या कभी किसी का पुनर्जन्म से छुटकारा होता है?
आर्य: मनुष्य जब पूर्ण सत्यवादी, प्रभुभक्त, उपासक एवं संयमी जीवन जीते हुए, परमेश्वर की उपासना करते हुए अपने नित्य कार्य करते हैं वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं, तब वे पुनर्जन्म से छुटकारा पा लेते हैं। पर बाईबिल वर्णित ईश्वर के दूत यीशु मसीह पर विश्वास लाने मात्रा से अथवा कुरान में वर्णित अल्लाह पर ईमान या विश्वास लाने मात्रा से पापों से मुक्ति नहीं मिलती। इसके लिए शुभ कार्य, मन की स्वच्छता, आत्मा की पवित्राता, श्रेष्ठ आचरण, प्राणीमात्र से प्रेमभाव अत्यंत आवश्यक हैं। मोक्ष के लिए कोई छोटा रास्ता भी नहीं है। आपको शॉर्टकट बताकर मूर्ख बनाने वाले अनेकों मिल जायेंगे पर उस सर्वज्ञ, सर्वहितकारी ईश्वर को प्राप्त करने के लिए आपको ही प्रयासरत रहना होगा। उसी से आत्मा शुद्ध होकर मोक्ष रूपी अनंत सुख की पात्र बनेगी।
मौ0सा0: पशु तो अपनी योनि में प्रसन्न रहते हैं। उनको किस प्रकार दण्ड योनि माना जा सकता है?
आर्य: पशु योनि में आत्मा अपनी उन्नति कर उच्च योनियों में प्रवेश नहीं कर सकती और आत्मिक आनंद को प्राप्त नहीं कर सकती। पशु योनि एक प्रकार से सुधार योनि है। उस योनि में पशु एक सीमा तक गतिविधियाँ कर सकता है पर पूर्णतः स्वतंत्रा नहीं होता। उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि वह प्रसन्न है पर यह भ्रम है। अगर पशु योनि इतनी ही अच्छी होती तो मनुष्यों को कभी ईश्वर से कुत्ता-गधा या सूअर बनने की प्रार्थना करते क्यों नहीं देखा जाता? तर्कशास्त्रा का सिद्धांत है कि मनुष्य और पशु में मूल रूप से अंतर बुद्धि का है। यदि मनुष्य बुद्धि से प्रतिकूल होकर चलता है तो वह पशु के समान काम करता है और वेद में बुद्धि को ईश्वर की सबसे बड़ी देन कहा गया है। आप ही देखें एक बुद्धिजीवी व्यक्ति समाज का कितना उपकार कर सकता है जबकि एक मंदबुद्धि व्यक्ति समाज में अपना सहयोग नहीं दे पाता। इसलिए बुद्धि सर्वोपरि है। मनन करने वाले को मनुष्य कहते हैं और मनन करने के लिए बुद्धि परम आवश्यक है इसलिए पशु योनि एक अभिशाप, एक दण्ड के समान हैं न कि प्रसन्न रहने की योनि है।
मौ0 सा0: अगर मोक्ष ही जीवन का मूल उद्देश्य है तो ईश्वर सभी आत्माओं को मोक्ष प्रदान करके उन्हें पुनर्जन्म के झंझट से ही क्यों नहीं मुक्ति दिला देता है?
आर्य: मौलाना जी, आपने बढ़िया प्रश्न किया है। ईश्वर, जीवात्माएँ एवं प्रकृति ये तीन अनादि (अर्थात् आरंभ से रहित) तत्व हैं। ईश्वर ने आत्माओं को उत्पन्न नहीं किया है। सृष्टि की रचना कर ईश्वर आत्माओं के लिए कर्म करने का अवसर प्रदान करते हैं। शरीर एवं आत्मा का मेल जन्म व अलग होना मृत्यु कहलाता है। सृष्टि की रचना के पश्चात् आत्माओं को वेद विद्या का ज्ञान देकर ईश्वर उन्हें दुःखों से छूट जाने अर्थात् मोक्ष की प्रेरणा प्रदान करते हैं। आत्माएं कर्म करने के लिए मुक्त हैं पर कर्मों के फल पाने के लिए बंधित है। जो जैसा कर्म करेगा वैसा फल पायेगा। इसलिए ईश्वर वेद ज्ञान द्वारा प्राणियों को मोक्ष प्राप्ति का ध्येय प्राप्त करने की प्रेरणा देते हैं। अगर आत्माएँ ईश्वर ने बनाई होतीं तो जैसा कि हम ईश्वर की सम्पूर्णता के विषय में जानते हैं कि उसकी बनाई किसी वस्तु में खोट नहीं होता तो जीवात्मा भी ईश्वर द्वारा बनाए जाने पर कभी पाप के लिए प्रवृत्त नहीं होती। अगर कोई कहे कि जीवात्माएँ ईश्वर का अंश है तो भी वह ईश्वर के अविभाजित (जिसके टुकड़े नहीं हो सकते।) गुण के विपरीत तर्क हैं। बाईबिल वर्णित ईश्वर पहले सृष्टि निर्माण करता है, फिर आदम और हव्वा को बनाता है, फिर पाप के फलों द्वारा वृक्ष बनाकर हव्वा को बहकाने के लिए शैतान को बनाता है, फिर हव्वा को पापी कहकर उसे प्रसव पीड़ा का दण्ड देता है। फिर दूत यीशु मसीह पर विश्वास लाने वाले की पापों से मुक्ति का प्रपंच करता है। आप ही बताईये सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाला) ईश्वर क्या शैतान, हव्वा और पापी फल वाले पेड़ को बनाने से पहले यह नहीं जानता था कि उनका क्या हश्र होगा? अगर कोई पिता किसी के यहाँ पर चोरी करें तो क्या उसकी सजा उसके बेटे को देंगे? यह कहाँ तक न्यायकारी होगा। अब कुरान वर्णित ईश्वर को लें। पहले वह ज्ञान से अनभिज्ञ मनुष्यों को उत्पन्न करता है, फिर लम्बे समय बाद उन्हें कभी तोरैत, कभी जबूर, कभी इंजिल और अंत में कुरान का ज्ञान देता है और केवल कुरान, अल्लाह व रसूल पर ईमान लाने वाले को जन्नत बख्शता है। भला कुरान व रसूल के उद्भव से पहले जिन रूहों ने यहाँ जन्म लिया उनका क्या बना और गैर मुसलमान कभी जन्नत नहीं जा पाएँगे क्योंकि वे कभी कुरान पर ईमान नहीं लाये तो फिर कुरान वर्णित अल्लाह ने गैर मुसलमानों को बनाया ही क्यों? इससे एक तो अल्लाह पक्षपाती सिद्ध हुआ दूसरा उसकी रचना में कमियाँ मिलती हैं जो अल्लाह के गुणों के विपरीत बात है।
अतः ईश्वर, जीवात्माएँ एवं प्रकृति तीनों अनादि हैं। सृष्टि प्रवाह से अनादि है। ईश्वर सृष्टि के आरंभ में ही वेद द्वारा जीवात्माओं को ज्ञान प्रदान कर श्रेष्ठ कर्म कर मोक्ष प्राप्त करने की प्रेरणा देता है, यही सिद्धान्त तर्कसंगत व एकमात्रा सत्य कथन है। यजुर्वेद 31/7 में ईश्वर स्पष्ट रूप से कहते हैं- सर्वान्तर्यामी और सर्वव्यापक परमात्मा ने जगत पर कृपा करके, इसकी भलाई के लिए वेदों का प्रकाश किया, जिससे कि अज्ञान से निकल कर, ज्ञान की ओर अग्रसर हों और आध्यात्मिक प्रकाश से मन की आँखों को सुप्रकाशित करें।
मौ0सा0: वेदों में वर्णित ईश्वर पाप करने पर पशु योनि में जन्म देता है जबकि कुरान वर्णित अल्लाह ईमान लाने पर पापों को क्षमा कर जन्नत बख्शता है। इससे तो अल्लाह ज्यादा रहमदिल हुआ।
आर्य जी: मौलाना साहब। मैं हैरान हूँ कि आप पाप क्षमा होने वाली बात पर कैसे विश्वास कर सकते हैं! आप स्वीकारते हैं कि अल्लाह ताला न्यायकारी है। न्याय उसी को कहते हैं कि जो जितना करे, उसको वैसा और उतना ही फल देना। फिर क्षमा कैसी? हजरत! क्षमा, सिफारिश और रिश्वत ये सब ऐसे मन्तव्य हैं कि जिनसे सर्वेश्वर और सर्वज्ञ परमात्मा पर अन्याय व अत्याचार का दोष लगता है और अगर बाईबल व कुरान वर्णित पाप क्षमा होने की बात को माना जाये तो यह संसार में पापों की प्रवृत्ति को बढ़ाने वाली बात है। जरा बताईये अगर कोई व्यक्ति किसी का कत्ल कर दे व गिरिजाघर में जाकर यीशु मसीह के समक्ष अपने पाप का बखान कर क्षमा माँग ले तो क्या वह दण्ड से मुक्त हो जायेगा। अगर हाँ तो अगली बार वह इससे दुगुना पाप करेगा और फिर जाकर क्षमा माँग लेगा। अगर ऐसा होने लगा तो समाज में अराजकता फैल जायेगी व हर कोई पाप करेगा और माफी मांगकर फिर पाप करते रहेंगे। ईश्वर उसी को जन्नत अर्थात सुख देता है जो उसके बताये मार्ग पर चलता है। जो भी पाप कर्म छोड़कर पुण्य कर्म कर सदाचारी बनेगा ईश्वर उस पर निस्संदेह कृपादृष्टि करेगा।
मौ0सा0: अगर मनुष्य का जन्म पूर्व जन्म में किये गये पुण्यों से होता है तो एक विद्यार्थी को शिक्षा ग्रहण करने में कितने दुःख उठाने पड़ते हैं। इससे तो ईश्वर अन्यायकारी सिद्ध हुआ जो पूर्वजन्म में किये गये पुण्यों के बदले उसे इस जन्म में दुःख रूपी कष्ट दिया।
आर्य: सर्वप्रथम विद्यार्थी को शिक्षा ग्रहण करने में परिश्रम करना पड़ता है वह दुःख नहीं अपितु तप है। श्रेष्ठ कार्यों को करने में जो कष्ट उठाने पड़ते हैं उसे दुःख नहीं अपितु तप कहते हैं। तप करने से व्यक्ति उन्नति करता है। और हमारे कर्मों के करने पर जो दुःख होता है उन्हें ईश्वर दूर नहीं करता बल्कि हमें उनसे लड़ने के लिए धैर्य या आत्मबल प्रदान करता है। इसलिए विद्यार्थी को विद्याग्रहण करने के समय होने वाले तप को दुःख कहना ही गलत है। इसे पूर्व जन्म में किये गए पुण्यों का फल ही मानना चाहिए जो इस जन्म में व्यक्ति को तप कर महान बनने का अवसर प्रदान करते हैं अन्यथा एक गुणरहित, आलसी, मूर्ख व संस्कारहीन व्यक्ति की संसार में कोई भी प्रशंसा नहीं करता।
मौ0 सा0: यहाँ तक तो ठीक है, आर्य जी! पर क्या आपके धर्मग्रंथ जिसमें रामायण-महाभारत, वेद आदि पुनर्जन्म के विषय में प्रकाश डालते हैं?
आर्य: बिल्कुल वेदादि शास्त्रों के प्रमाण तो स्वयं वेदों के प्रकाण्ड पण्डित स्वामी दयानन्द सरस्वती ने अपनी पुस्तक ‘ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका’ में दिये हैं जैसे:-
1- हे सुखदायक परमेश्वर! आप कृपा करके पुनर्जन्म में हमारे बीच में उत्तम नेत्रा आदि सब इन्द्रियाँ स्थाप कीजिये। (ऋग्वेद 8/1/23/6)
2- परमेश्वर कृपा करके सब जन्मों में हमको सब दुःख निवारण करने वाली पथ्यरूप स्वस्ति को देवे। (ऋग्वेद 8/1/23/7)
3- परमेश्वर सब बुरे कामों और सब दुःखों से पुनर्जन्म में अलग रखें। (यजुर्वेद 4/15)
4- हे जगदीश्वर! आपकी कृपा से पुनर्जन्म में मन आदि ग्यारह इन्द्रियाँ मुझको प्राप्त हों। (अथर्ववेद 7/6/67/1)
5- जो मनुष्य पूर्वजन्म में धर्माचरण करता है उस धर्माचरण के फल से अनेक उत्तम शरीरों को धारण करता है। (अथर्ववेद 5/1/1/2)
6- जीव अपने पाप और पुण्यों के आधार पर मनुष्य या पशु आदि अगले जन्म में बनते हैं। (यजुर्वेद 19/47)
7- श्री रामचन्द्र जी श्रीलक्ष्मण जी से कहते हैं:- लक्ष्मण! पूर्वजन्म में मैंनें अवश्य ही बारम्बार ऐसे कर्म किये हैं, जिनके कारण मैं आज दुःख में फंस गया हूँ। राज से भ्रष्ट हुआ, इष्ट मित्रों से बिछुड़ गया, पिता की मृत्यु हुई, माता-पिता से वियोग हुआ, हे लक्ष्मण! हमें ये सब शोक पूर्वजन्म के पापों के फलस्वरूप ही प्राप्त हुए हैं।
(वाल्मीकि रामायण, अरण्यकाण्ड, सर्ग 63, श्लोक 4,5)
8- हे अर्जुन! मेरे और तेरे अनेक जन्म हो चुके हैं। मैं योग विद्या के बल से उन सबको जानता हूँ। परन्तु तू नहीं जानता। प्रत्येक मनुष्य को अपने-अपने शुभ या अशुभ कर्मों का फल तो अवश्य ही भोगना पड़ता है। (गीता)
मौ0 सा0: आर्यजी, आपने अपनी धर्मपुस्तकों से तो प्रमाण दे दिये परन्तु हम तो केवल कुरान को मानते हैं और कुरान में पुनर्जन्म का कोई भी प्रमाण नहीं है।
आर्य जी: ऐसा नहीं है मौलाना साहब! कुरान में पुनर्जन्म के अनेक प्रमाण हैं। किन्तु स्वार्थवश लोग उनको नहीं देखते हुए भी नहीं देखते। बिना विद्या के पूर्वाग्रहों और धारणाओं को तोड़ना आसान नहीं होता। देखिये पुनर्जन्म ेके विषय में कुरान शरीफ में क्या कहा है-
(1) सूरा 22, अल-हज, आयत 66- और वही है जिसने तुम्हें जीवन प्रदान किया। फिर वही तुम्हें मृत्यु देता है और वही तुम्हें जीवित करने वाला है। पेज- 292
(2) सूरा 23, अल-मोमिनून-आयत 15, 16। पेज 294
(3) सूरा 23, अल मोमीनून- आयत 100। पेज 300
(4) सूरा 7, अल आराफ, आयत 29, पेज 129
संस्करण (मधु संदेश संगम) अनुवादक: मौलाना-मुहम्मद फारूक खाँ व डॉ0 मुहम्मद अहमद)
मौलाना – बस बस आर्य जी, मुझे पता नहीं क्या हो गया है, लगता है जैसे आज तक बालू में से तेल निकालने का प्रयास करता रहा। मैं आपकी इन बातों पर मन से विचार करूँगा। इस्लामी विद्वानों से शंका समाधान करना बहुत मुश्किल है क्योंकि उनका अंधविश्वास हैं कि मजहब में अक्ल का दखल नहीं। लेकिन आपकी बातों से मेरी आंखें खुल रही हैं। आप बस कहीं से मुझे सत्यार्थ-प्रकाश उपलब्ध करा दीजिये।
आर्य – अरे नहीं मौलाना साहब, आप सात्त्विक प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। इसलिए आपके अन्दर जिज्ञासा उत्पन्न हो रही है। यह परमेश्वर की कृपा है। मेरा आपसे कोई आग्रह नहीं है। बस आप मेरे मित्रा हैं इसलिए मैं अपने आप को आपको सत्य मार्ग बतलाने से रोक नहीं सका। अगली भेंट में मैं आपको स्वामी दयानन्द द्वारा लिखित सत्यार्थ- प्रकाश भंेट करूँगा। परमात्मा हम सब की बुद्धियों को प्रकाशित करे ताकि हम सत्य और असत्य को जानकर सत्य को ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सक्षम हो सकें।

No comments:

Post a Comment