Friday, 7 June 2013

स्वामी दयानंद की वेद भाष्य को देन – भाग १०




स्वामी दयानंद की वेद भाष्य को देन – भाग १०

वेदों की उत्पत्ति के विषय में भ्रांतियों का निवारण

डॉ विवेक आर्य

वेदों के विषय में उनकी उत्पत्ति को लेकर विशेष रूप से विद्वानों में मतभेद हैं.कुछ मतभेद पाश्चात्य विद्वानों में हैं कुछ मतभेद भारतीय विद्वानों में हैं जैसे

१. वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?

२. वेदों की उत्पत्ति ईश्वर से हुई अथवा ऋषियों से हुई?

३. वेदों का संग्रह ऋषि वेद व्यास जी ने किया था?

१. वेदों की उत्पत्ति कब हुई ?

स्वामी दयानंद जी ने अपने ग्रंथों में ईश्वर द्वारा वेदों की उत्पत्ति का विस्तार से वर्णन किया हैं. ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद के पुरुष सूक्त (ऋक १०.९०, यजु ३१ , अथर्व १९.६) में सृष्टी उत्पत्ति का वर्णन हैं. परम पुरुष परमात्मा ने भूमि उत्पन्न की, चंद्रमा और सूर्य उत्पन्न किये, भूमि पर भांति भांति के अन्न उत्पन्न किये,पशु आदि उत्पन्न किये. उन्ही अनंत शक्तिशाली परम पुरुष ने मनुष्यों को उत्पन्न किया और उनके कल्याण के लिए वेदों का उपदेश दिया. इस प्रकार सृष्टि के आरंभ में मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही परमात्मा ने उसे वेदों का ज्ञान दे दिया. इसलिए वेदों की उत्पत्ति का काल मनुष्य जाति की उत्पत्ति के साथ ही हैं.

स्वामी दयानंद की इस मान्यता का समर्थन ऋषि मनु और ऋषि वेदव्यास भी करते हैं.

परमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वेदों के शब्दों से ही सब वस्तुयों और प्राणियों के नाम और कर्म तथा लौकिक व्यवस्थायों की रचना की हैं. (मनु १.२१)

स्वयंभू परमात्मा ने सृष्टी के आरंभ में वेद रूप नित्य दिव्य वाणी का प्रकाश किया जिससे मनुष्यों के सब व्यवहार सिद्ध होते हैं (वेद व्यास,महाभारत शांति पर्व २३२/२४)

स्वामी दयानंद ने वेद उत्पत्ति विषय में सृष्टी की रचना काल को मन्वंतर,चतुर्युगियों व वर्षों के आधार पर संवत १९३३ में १९६०८५२९७७ वर्ष लिखा हैं अर्थात आज संवत २०६३ में इस सृष्टी को १९६०८५३१०७ वर्ष हो चुके हैं.

पाश्चात्य विद्वानों में वेद की रचना के काल को लेकर आपस में भी अनेक मतभेद हैं जैसे

मेक्स मूलर – १२०० से १५०० वर्ष ईसा पूर्व तक

मेकडोनेल- १२०० से २००० वर्ष ईसा पूर्व तक

कीथ- १२०० वर्ष ईसा पूर्व तक

बुह्लर- १५०० वर्ष ईसा पूर्व

हौग – २००० वर्ष ईसा पूर्व तक

विल्सन- २००० वर्ष ईसा पूर्व तक

ग्रिफ्फिथ- २००० वर्ष ईसा पूर्व तक

जैकोबी- ३००० वर्ष ४००० वर्ष ईसा पूर्व तक

इसका मुख्य कारण उनके काल निर्धारित करने की कसौटी हैं जिसमें यह विद्वान वेद की कुछ अंतसाक्षियों का सहारा लेते हैं. जैसे एक वेद मंत्र में भरता: शब्द आया हैं इसे महाराज भारत जो कुरुवंश के थे का नाम समझ कर इन मन्त्रों का काल राजा भरत के काल के समय का समझ लिया गया. इसी प्रकार परीक्षित: शब्द से महाभारत के राजा परीक्षित के काल का निर्णय कर लिया गया.

अगर यहीं वेद के काल निर्णय की कसौटी हैं तो कुरान में ईश्वर के लिए अकबर अर्थात महान शब्द आया हैं. इसका मतलब कुरान की उस आयत की रचना मुग़ल सम्राट अकबर के काल की समझी जानी चाहिए.

इससे यह सिद्ध होता हैं की वेद के काल निर्णय की यह कसौटी गलत हैं.

अंतत मेक्स मूलर ने भी हमारे वेदों की नित्यत्व के विचार की पुष्टि कर ही दी जब उन्होंने यह कहाँ की “हम वेद के काल की कोई अंतिम सीमा निर्धारित कर सकने की आशा नहीं कर सकते.कोई भी शक्ति यह स्थिर नहीं कर सकती की वैदिक सूक्त ईसा से १००० वर्ष पूर्व, या १५०० वर्ष या २००० वर्ष पूर्व अथवा ३००० वर्ष पूर्व बनाये गए थे. सन्दर्भ- Maxmuller in Physical Religion (Grifford Lectures) page 18 “

वेद का यह जो कल स्वामी दयानंद बताते हैं, वह इस कल्प की दृष्टी से हैं. यूँ तू हर कल्प के आरंभ में परमात्मा वेद का ज्ञान मनुष्यों को दिया करते हैं. भुत काल के कल्पों की भांति भविष्य के कल्पों में भी परमात्मा वेद का उपदेश देते रहेगें. परमात्मा में उनका यह देवज्ञान सदा विद्यमान रहता हैं. परमात्मा नित्य हैं इसलिए वेद भी नित्य हैं. इस दृष्टि से वेद का कोई काल नहीं हैं.

२. वेदों की उत्पत्ति ईश्वर से हुई अथवा ऋषियों से हुई?

अब तक हम वेदों की उत्पत्ति के काल पर विचार कर चुके हैं आगे वेदों की उत्पत्ति को लेकर भी अनेक प्रकार की भ्रांतियां प्रचलित हैं जैसे वेदों की रचना किसने की, ईश्वर चूँकि निराकार हैं इसलिए वेदों की रचना कैसे कर सकता हैं, अगर ऋषियों ने की तो किन ऋषियों ने और ईश्वर नें उन्हीं ऋषियों को ही क्यूँ चुना.

वेद ही स्पष्ट रूप से कहते हैं की जिसका कभी नाश नहीं होता, जो सदा ज्ञान स्वरुप हैं, जिसको अज्ञान का कभी लेश नहीं होता , आनंद जो सदा सुखस्वरूप और सब को सुख देने वाला हैं , जो सब जगह पर परिपूर्ण हो रहा हैं, जो सब मनुष्यों को उपासना के योग्य इष्टदेव और सब सामर्थ्य से युक्त हैं, उसी परब्रह्मा से उसी पर ब्रह्मा से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, यह चारों वेद उत्पन्न हुए हैं. (यजुर्वेद ३१.७)

जो शक्तिमान परमेश्वर हैं उसी से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद, यह चारों वेद उत्पन्न हुए हैं. (अथर्ववेद १०.२३.४.२०)

इन वेदों के प्रमाणों से यह सिद्ध होता हैं की वेदों की उत्पत्ति ईश्वर से हुई हैं.

अब जो यह कहते हैं ईश्वर निराकार हैं तो वे कैसे वेदों की उत्पत्ति कर सकते हैं उनसे प्रश्न हैं की जब निराकार ईश्वर इस सृष्टी की रचना कर सकते हैं,धरती, पर्वत, पशु, पक्षी सूर्य आदि ग्रहों की रचना कर सकते हैं, मनुष्य आदि को जन्म दे सकते हैं तो ईश्वर निराकार रूप में ही वेदों के ज्ञान को क्यूँ प्रदान नहीं कर सकते.

ईश्वर के वेदों को देने का प्रयोजन मनुष्यों को ज्ञान देना था. बिना ज्ञान के मनुष्य पशु के समान व्यवहार करता हैं और उसे जीवन की उद्देश्य का भी नहीं पता होता. मनुष्य को ईश्वर से कुछ स्वाभाविक ज्ञान मिलता हैं उसके पश्चात शास्त्र आदि पठन से, उपदेश सुनने से अथवा परस्पर व्यवहार मनुष्य ज्ञान प्राप्ति करते हैं.इसीलिए सृष्टी के आरंभ में ईश्वर ने मनुष्य को वेद विद्या का ज्ञान दिया जिससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की सिद्धि कर मनुष्य परम आनंद को प्राप्त हो.

सृष्टी की उत्पत्ति में ईश्वर ने वेदों का ज्ञान चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगीरा को दिया. इन चारों के ह्रदय में वेदों के ज्ञान का प्रकाश ईश्वर ने किया. इन चारों को ईश्वर ने इसलिए चुना क्यूंकि इससे पूर्व की सृष्टी में एन ऋषियों ने सबसे अधिक पूर्व पुण्य का संचय किया था.

अब कोई कहे की ईश्वर सभी आत्मायों को वेदों का ज्ञान दे सकते हैं तो उसमे ईश्वर न्यायकारी नहीं कहलायेगे क्यूंकि जो उचित मार्ग पर चलेगा उसी पर ईश्वर की कृपा होगी.सभी आत्माएं एक जैसे कर्म नहीं करती इसलिए सभी पर एक जैसे ईश्वर की कृपा नहीं हो सकती.

३. वेदों का संग्रह ऋषि वेद व्यास जी ने किया था?

कुछ विद्वानों का मानना हैं की वेद संहिता का संग्रह ऋषि वेद व्यास जी ने किया था. ऋषि वेद व्यास जी का काल तो बहुत बाद का हैं.

इस विषय में उपनिषद् और मनु स्मृति के प्रमाण इस कथन की पुष्टि करते हैं की वेदों की रचना सृष्टी के आदि कल में चार ऋषियों से हुई थी.

जिसने ब्रह्मा को उत्पन्न किया और ब्रह्मा आदि को सृष्टी के आदि में अग्नि आदि के द्वारा वेदों का भी उपदेश किया हैं उसी परमेश्वर के शरण को हम लोग प्राप्ति होते हैं- श्वेताश्व्तर उपनिषद्

पूर्वोक्त अग्नि, वायु, रवि (आदित्य) और अंगीरा से ब्रह्मा जी ने वेदों को पढ़ा था- मनु स्मृति

इन प्रमाणों से यह स्पष्ट होता हैं की वेदों को चार ऋषियों ने संग्रह किया था नाकि ऋषि वेद व्यास जी ने किया था.

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