क्रांतिकारी भगत सिंह की लेखनी से
(डॉ विवेक आर्य)
१९ दिसम्बर बलिदान दिवस पर शहीदों का विशेष स्मरण
काकोरी के वीर शहीदों का वीर भगत सिंह द्वारा “किरति ” नामक पत्रिका में जनवरी १९२७ और मई १९२७ मिल विशेष स्मरण किया गया था. उन ऐतिहासिक लेखों को आज दोबारा प्रकाशित किया जा रहा हैं.
पहले किरति पंजाबी पत्रिका में काकोरी से सम्बंधित कुछ लिखा जा चूका हैं. आज हम काकोरी कांड और वीरों के सम्बन्ध में कुछ लिखेंगे, जिन्हें उस सम्बन्ध में कड़ी सजाएँ मिली हैं.
९ अगस्त १९२५ को एक छोटे से स्टेशन काकोरी में एक ट्रेन चली. यह स्टेशन लखनऊ से आठ मील कि दूरी पर हैं. ट्रेन मील- डेढ़ मील चली होगी कि सेकंड क्लास में बैठे हुए तीन नौजवानों ने गाडी रोक ली और दूसरों ने मिलकर गाड़ी में जा रहा सरकारी खजाना लूट लिया. उन्होंने पहले ही जोर से आवाज़ देकर सभी यात्रियों को समझा दिया था कि वें डरें नहीं, क्यूंकि उनका उद्देश्य यात्रियों को तंग करने का नहीं, सिर्फ सरकारी खजाना लूटने का हैं. खैर, वे गोलियां चलते रहे. वह (कोई यात्री) आदमी गाडी से उतर पड़ा और गोली लग जाने से मर गया. सरकारी अधिकारी हार्टन सी. आइ इसकी जाँच में लगा. उसे पहले से ही यकीन हो गया था कि यह डाका क्रांतिकारी जाते का काम हैं. उसने सभी संदिग्ध व्यक्तियों कि छानबीन शुरू कर डाली. इतने में क्रांतिकारी जत्थे का राज्य परिषद् कि एक बैठक मेरठ में होनी तय हुई. सरकार को इसका पता चल गया.वहां खूब छानबीन कि गई.फिर सितम्बर के अंत में हार्टन ने गिरफ्तारियों के वारंट जारी किये और २६ सितम्बर को बहुत से तलाशियां ली गयी और बहुत से व्यक्ति पकड़ लिए गए. कुछ नहीं पकडे गए. उनमें एक श्री राजेंदरनाथ लाहिरी दक्षिणेश्वर बम केस में पकडे गए और वही उन्हें दस वर्ष कैद हो गयी और श्री अस्फाकुल्लाह खान और शचीन्द्र बक्शी बाद में पकडे गए जिन पर अलग मुकदमा चला.
ये हैं
१. रामप्रसाद २.राजेंदरनाथ लाहिरी ३. रोशन सिंह ४. अशफाकउल्ला खान
राजेंदरनाथ लाहिरी
इनमे से राजेंदर लाहिरी एम. ए. का छात्र था. वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पढता था. वह १९२५ में पकड़ा गया था. उनकी अपील वह रहम कि दरखास्त गयी थी, लेकिन वे सब नामंजूर हो गयी.
इन बहादुर भाई ने निम्न पत्र अपने बड़े भाई को लिखा था-
मेरे प्रिय भाई !
आज मुझे सुप्रीन्तेंडेंट ने बताया कि वायसराय ने मेरी रहम कि दरखास्त नामंजूर कर दी हैं. जेल के नियमों के अनुसार मुझे एक सप्ताह के भीतर फाँसी पर चदाया जायेगा. तुम्हें मेरे लिए अफ़सोस नहीं करना चाहिए क्यूंकि में अपना पुराना शारीर छोड़कर नया जन्म धारण कर रहा हूँ. आपको यहाँ आकार मुलाकात करने कि जरुरत नहीं, क्यूंकि कुछ दिन पहले ही आप मुलाकात कर चुके हो. जब में लखनऊ में था तो बहन ने दो बार मुलाकात कि थी. सभी को मेरी और से प्रणाम और लड़कों को प्यार.
आपका प्रिय
राजेंदरनाथ लाहिरी
ठाकुर रोशन सिंह
आपको १९ दिसम्बर को इलाहाबाद में फाँसी दी गयी. आपका एक आखिरी पत्र १३ दिसम्बर को लिखा हुआ प्राप्त हुआ. आप लिखते हैं-
इस हफ्ते फाँसी हो जाएगी. ईश्वर के आगे विनती हैं की आपके प्रेम का आपको फल दे. आप मेरे लिए कोई गम न करना. मेरी मौत तो ख़ुशी वाली हैं . चाहिए तो यह की कोई बदफैली करके बदनाम होकर न मरे और अंत समय ईश्वर याद रहे. सो यहीं दो बातें हैं. इसलिए कोई गम नहीं करना चाहिए. दो साल बाल बच्चों से अलग रहा हूँ. ईश्वर भजन का खूब अवसर मिला. इसलिए मोह माया सब टूट गयी. अब कोई चाह बाकी न रही.मुझे विश्वास हैं की जीवन की दुखभरी यात्रा ख़त्म करतके सुख भरे स्थान पर जा रहा हूँ. शास्त्रों में लिखा हैं , युद्ध में मरने वालों की ऋषियों जैसी रहत (श्रेणी) होती हैं.
जिंदगी जिन्दादिली को जानिए रोशन!
वर्ना कितने मरे और पैदा होते जाते हैं!!
आखिरी नमस्कार!!!
श्री रोशन सिंह राय बरेली में काम करने वालों में थे. किसान आन्दोलन में जेल जा चुके थे. सबको विश्वास था की हाई कोर्ट में आपकी मौत की सजा टूट जाएगी क्यूंकि आपके खिलाफ कुछ भी न था. लेकिन फिर भी अंग्रेज शाही का शिकार हो ही गए और फाँसी पर लटका दिए गए. तख़्त पर खड़े होने के बाद मुंह से आवाज़ निकली , वह यह थी.
वन्दे मातरम
आपकी अर्थी के जुलुस की इजाजत नहीं दी गयी. लाश की फोटो लेकर दोपहर में आपका अंतिम संस्कार कर दिया गया.
श्री अशफाकउल्ला खान
यह मस्ताना शायर भी हैरान करने वाली ख़ुशी से १९.१२.१९२७ को फाँसी चढ़ा. बड़ा सुन्दर और लम्बा चोडा जवान था, तगड़ा बहुत था. जेल में कुछ कमजोर हो गया था. अपने मुलाकात के समय बताया की कमजोर होने का कारण गम नहीं, बल्कि खुदा की याद में मस्त रहने की खातिर रोटी बहुत कम खाना हैं. फाँसी के एक दिन पहले आपकी मुलाकात हुई. आप खूब सजे संवरे थे. बड़े बड़े कड़े हुए केश खूब सजते थे. बड़ा हंस हंस कर बात करते रहे. अपने कहाँ कल मेरी शादी होने वाली हैं. दुसरे दिन सुबह छ बजे आपको फाँसी दी गयी. कुरान शरीफ का बस्ता लटकाकर हाजियों की तरह वजीफा पढ़ते हुए बड़े हौंसले से चल पड़े. आगे जाकर तख्ते पर रस्सी को चूम लिया. वहीँ अपने कहाँ-
“मैंने कभी किसी के खून से अपने हाथ नहीं रंगे और मेरा इंसाफ खुदा के सामने होगा. मेरे ऊपर लगाये गए इलज़ाम गलत हैं” खुदा का नाम लेते ही रस्सी खीच ली गयी और वे कूच कर गए. उनके रिश्तेदारों ने बड़ी मिन्नतों-खुसामदों से उनकी लाश ली और उन्हें शाहजहाँपूर ले गए. लखनऊ स्टेशन पर मालगाड़ी के एक डिब्बे में उनकी लाश देखने का अवसर कूच लोगों को मिला.फाँसी के दस घंटे के बाद भी उनके चेहरे पर रोनक थी. ऐसा लगता था की अभी ही सोये हों. लेकिन अशफाक शायर थे और उनका शायर उपनाम हसरत था. मरने से पहले अपने यह दो शेयर कहे थे
फना हैं हम सबके लिए, हम पै कूच नहीं मौकूफ!
बका हैं एक फकत जा-ए-किब्रिया के लिए!!
(मरना सबको हैं, हम पर कूच भी निर्भर नहीं . न मरने वाला तो सिर्फ परमात्मा हैं)
और
तंग आकार हम उनके जुल्म-ए- बेदाद से!
चल दिए सू-ए-अदम जिन्दाने फैजाबाद से!!
(शासकों के बेमिसाल दमन से तंग आकर हम फैजाबाद से दुनिया छोड़कर चले)
श्री अशफाक की और से एक माफीनामा छपा था, उसके सम्बन्ध में श्री रामप्रसाद बिस्मिल जी ने सपने आखिरी ऐलान में पोज़ीशन साफ कर दी हैं.अपने कहा की अशफाक माफीनामा तो क्या अपील के लिए भी राजी नहीं थे. अपने कहाँ था में खुदा के सिवाय किसी के आगे झुकना नहीं चाहता.परन्तु रामप्रसाद के कहने सुनने से आपने वही सब कुछ लिखा था. वर्ना मौत का उन्हें दर या भय नहीं था. उपरोक्त हाल पड़कर पाठक भी यह बात समझ सकते हैं. आप शाहजहाँपूर के रहने वाले थे और आप रामप्रसाद के दायें हाथ थे, मुस्लमान होने के बावजूद आपका कट्टर आर्यसमाजी धर्म से हद दर्जे का प्रेम था. दोनों प्रेमी एक बड़े काम के लिए आपने प्राण उत्सर्ग कर अमर हो गए.
श्री रामप्रसाद बिस्मिल
रामप्रसाद बिस्मिल बड़े होनहार नौजवान थे. गजब के शायर थे. देखने में भी बहुत सुंदर थे. योग्य बहुत थे. जानने वाले कहते हैं की यदि किसी और जगह या किसी और देश या किसी और समय पैदा हुए होते तो सेना अध्यक्ष होते. आपको पूरे षडयन्त्र का नेता माना गया हैं.चाहे बहुत ज्यादा पढ़े हुए नहीं थे, लेकिन फिर भी पंडित जगत नारायण जैसे सरकारी वकील की सुध बुध भुला देते थे. चीफ़ कोर्ट की अपनी अपील खुद ही लिखी थी, जिससे की जजों को कहना पड़ा की इसे लिखने में जरुर ही किसी बहुत बुद्धिमान व योग्य व्यक्ति का हाथ हैं. १९ तारीख की शाम कप आपको फाँसी दी गयी. १८ की शाम को जब आपको दूध दिया गया तो आपने यह कहकर इंकार कर दिया की अब मैं माँ का दूध ही पियूँगा. १८ को आपकी मुलाकात हुई. माँ को मिलते ही आपकी आँखों से अश्रु बह चले. माँ बहुत हिम्मत वाली देवी थी. आपसे कहने लगी- हरिश्चंद्र, दधिची आदि बुजुर्गों की तरह वीरता, धर्म वह देश के लिए जान दे, चिंता करने और पछताने की जरुरत नहीं. आप हँस पड़े. कहाँ! माँ मुझे क्या चिंता और पछतावा, मैंने कोई पाप नहीं किया. में मौत से नहीं डरता लेकिन माँ! लेकिन माँ आग के पास रखा घी पिघल ही जाता हैं. तेरा मेरा सम्बन्ध ही कुछ ऐसा हैं की पास होते ही आँखों में अश्रु उमर पड़े. नहीं तो में बहुत खुश हूँ. फाँसी पर ले जाते समय आपने बड़े जोर से कहाँ ‘वन्दे मातरम’ ‘भारत माता की जय ‘ और शांति से चलते हुए कहाँ-
मालिक तेरी रजा रहे और तू ही रहे
बाकि न में रहूँ, न मेरी आरजू रहे
जब तक की तन में जान रगों में लहूँ रहे
तेरी ही जिक्र-ए-यार , तेरी जुस्तजू रहे!
फाँसी के तख्ते पर खड़े होकर आपने कहाँ-
(मैं ब्रिटिश राज्य का पतन चाहता हूँ )
फिर ईश्वर के आगे प्रार्थना की और फिर एक मंत्र पढना शुरू किया. रस्सी खिंची गयी. रामप्रसाद जी फाँसी पर लटक गए. आज वह वीर इस संसार में नहीं हैं. उसे अंग्रेजी सरकार ने अपना खौफनाफ दुश्मन समझा. आम ख्याल यह हैं की उसका कसूर यही था की वह हलम देश में जन्म लेकर भी बड़ा भरी भोझ बन गया था और लड़ाई की विद्या से खूब परिचित था. आपको मैनपुरी षडयन्त्र ने नेताश्री गेंदालाल दीक्षित जैसे शूरवीर ने विशेष तौरपर शिक्षा देकर तैयार किया था. मैनपुरी के मुक़दमे के समय आप भाग कर नेपाल चले गए थे. अब वही शिक्षा आपकी मृत्यु का एक बड़ा कारण हो गयी. ७ बजे आपकी लाश मिली और बड़ा भरी जुलूस निकला गया. स्वदेश प्रेम में आपकी माता नें कहाँ-
“मैं आपने पुत्र की मृत्यु पर प्रसन्न हूँ, दुखी नहीं. में श्री रामचंद्र जैसा ही पुत्र चाहती थी.बोलो श्री रामचंद्र की जय”
इत्र-फुलेल और फूलों की वर्षा के बीच उनकी उनकी लाश का जुलूस जा रहा था. दुकानदारों ने उनके ऊपर से पैसे फेकें. ११ बजे आपकी लाश शमशान भूमि पहुंची और अंतिम क्रिया समाप्त हुई.
आपके पत्र का आखिरी हिस्सा आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं -
“मैं खूब सुखी हूँ. १९ तारीख को प्रात: जो होना हैं उसके लिए तैयार हूँ . परमात्मा खाफी शक्ति देंगे.मेरा विश्वास हैं की लोगों की सेवा के लिए फिट जल्द ही जन्म लूँगा. सभी से मेरा नमस्कार कहें. दया कर इतना काम और भी करना की मेरी और से पंडित जगतनारायण (सरकारी वकील जिसने इन्हें फाँसी लगवाने के लिए बहुत जोर लगाया था) को अंतिम नमस्कार कह देना. उन्हें हमारे खून से लथपथ रूपए से चैन की नींद आये. बुढ़ापे में ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे.”
रामप्रसाद की सारी हसरतें दिल ही दिल में रह गयी.फाँसी से दो दिन पहले से सी. आई. डी. के मिस्टर हैमिल्टन आप लोगों की मिन्नतें करते रहे की आप मौखिक रूप से सब बातें बता दो, आपको पांच हज़ार रुपया नकद दे दिया जायेगा और सरकारी खर्च पर विलायत भेजकर बैरिस्टर की पढाई करवाई जाएगी. लेकिन आप कब इन बातों की परवाह करने वाले थे.आप हुकुमतों को ठुकराने वाले व कभी कभार जन्म लेने वाले वीरों में से थे. मुक़दमे के दिनों में आपसे जज ने पूछा था,’ आपके पास क्या डिग्री हैं? तो आपने हँसकर जवाब दिया “सम्राट बनने वालों को डिग्री की कोई जरुरत नहीं होती, क्लाइव के पास भी कोई डिग्री नहीं थी.” आज वह हमारे बीच नहीं हैं. आह!!
(डॉ विवेक आर्य)
१९ दिसम्बर बलिदान दिवस पर शहीदों का विशेष स्मरण
काकोरी के वीर शहीदों का वीर भगत सिंह द्वारा “किरति ” नामक पत्रिका में जनवरी १९२७ और मई १९२७ मिल विशेष स्मरण किया गया था. उन ऐतिहासिक लेखों को आज दोबारा प्रकाशित किया जा रहा हैं.
पहले किरति पंजाबी पत्रिका में काकोरी से सम्बंधित कुछ लिखा जा चूका हैं. आज हम काकोरी कांड और वीरों के सम्बन्ध में कुछ लिखेंगे, जिन्हें उस सम्बन्ध में कड़ी सजाएँ मिली हैं.
९ अगस्त १९२५ को एक छोटे से स्टेशन काकोरी में एक ट्रेन चली. यह स्टेशन लखनऊ से आठ मील कि दूरी पर हैं. ट्रेन मील- डेढ़ मील चली होगी कि सेकंड क्लास में बैठे हुए तीन नौजवानों ने गाडी रोक ली और दूसरों ने मिलकर गाड़ी में जा रहा सरकारी खजाना लूट लिया. उन्होंने पहले ही जोर से आवाज़ देकर सभी यात्रियों को समझा दिया था कि वें डरें नहीं, क्यूंकि उनका उद्देश्य यात्रियों को तंग करने का नहीं, सिर्फ सरकारी खजाना लूटने का हैं. खैर, वे गोलियां चलते रहे. वह (कोई यात्री) आदमी गाडी से उतर पड़ा और गोली लग जाने से मर गया. सरकारी अधिकारी हार्टन सी. आइ इसकी जाँच में लगा. उसे पहले से ही यकीन हो गया था कि यह डाका क्रांतिकारी जाते का काम हैं. उसने सभी संदिग्ध व्यक्तियों कि छानबीन शुरू कर डाली. इतने में क्रांतिकारी जत्थे का राज्य परिषद् कि एक बैठक मेरठ में होनी तय हुई. सरकार को इसका पता चल गया.वहां खूब छानबीन कि गई.फिर सितम्बर के अंत में हार्टन ने गिरफ्तारियों के वारंट जारी किये और २६ सितम्बर को बहुत से तलाशियां ली गयी और बहुत से व्यक्ति पकड़ लिए गए. कुछ नहीं पकडे गए. उनमें एक श्री राजेंदरनाथ लाहिरी दक्षिणेश्वर बम केस में पकडे गए और वही उन्हें दस वर्ष कैद हो गयी और श्री अस्फाकुल्लाह खान और शचीन्द्र बक्शी बाद में पकडे गए जिन पर अलग मुकदमा चला.
ये हैं
१. रामप्रसाद २.राजेंदरनाथ लाहिरी ३. रोशन सिंह ४. अशफाकउल्ला खान
राजेंदरनाथ लाहिरी
इनमे से राजेंदर लाहिरी एम. ए. का छात्र था. वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पढता था. वह १९२५ में पकड़ा गया था. उनकी अपील वह रहम कि दरखास्त गयी थी, लेकिन वे सब नामंजूर हो गयी.
इन बहादुर भाई ने निम्न पत्र अपने बड़े भाई को लिखा था-
मेरे प्रिय भाई !
आज मुझे सुप्रीन्तेंडेंट ने बताया कि वायसराय ने मेरी रहम कि दरखास्त नामंजूर कर दी हैं. जेल के नियमों के अनुसार मुझे एक सप्ताह के भीतर फाँसी पर चदाया जायेगा. तुम्हें मेरे लिए अफ़सोस नहीं करना चाहिए क्यूंकि में अपना पुराना शारीर छोड़कर नया जन्म धारण कर रहा हूँ. आपको यहाँ आकार मुलाकात करने कि जरुरत नहीं, क्यूंकि कुछ दिन पहले ही आप मुलाकात कर चुके हो. जब में लखनऊ में था तो बहन ने दो बार मुलाकात कि थी. सभी को मेरी और से प्रणाम और लड़कों को प्यार.
आपका प्रिय
राजेंदरनाथ लाहिरी
ठाकुर रोशन सिंह
आपको १९ दिसम्बर को इलाहाबाद में फाँसी दी गयी. आपका एक आखिरी पत्र १३ दिसम्बर को लिखा हुआ प्राप्त हुआ. आप लिखते हैं-
इस हफ्ते फाँसी हो जाएगी. ईश्वर के आगे विनती हैं की आपके प्रेम का आपको फल दे. आप मेरे लिए कोई गम न करना. मेरी मौत तो ख़ुशी वाली हैं . चाहिए तो यह की कोई बदफैली करके बदनाम होकर न मरे और अंत समय ईश्वर याद रहे. सो यहीं दो बातें हैं. इसलिए कोई गम नहीं करना चाहिए. दो साल बाल बच्चों से अलग रहा हूँ. ईश्वर भजन का खूब अवसर मिला. इसलिए मोह माया सब टूट गयी. अब कोई चाह बाकी न रही.मुझे विश्वास हैं की जीवन की दुखभरी यात्रा ख़त्म करतके सुख भरे स्थान पर जा रहा हूँ. शास्त्रों में लिखा हैं , युद्ध में मरने वालों की ऋषियों जैसी रहत (श्रेणी) होती हैं.
जिंदगी जिन्दादिली को जानिए रोशन!
वर्ना कितने मरे और पैदा होते जाते हैं!!
आखिरी नमस्कार!!!
श्री रोशन सिंह राय बरेली में काम करने वालों में थे. किसान आन्दोलन में जेल जा चुके थे. सबको विश्वास था की हाई कोर्ट में आपकी मौत की सजा टूट जाएगी क्यूंकि आपके खिलाफ कुछ भी न था. लेकिन फिर भी अंग्रेज शाही का शिकार हो ही गए और फाँसी पर लटका दिए गए. तख़्त पर खड़े होने के बाद मुंह से आवाज़ निकली , वह यह थी.
वन्दे मातरम
आपकी अर्थी के जुलुस की इजाजत नहीं दी गयी. लाश की फोटो लेकर दोपहर में आपका अंतिम संस्कार कर दिया गया.
श्री अशफाकउल्ला खान
यह मस्ताना शायर भी हैरान करने वाली ख़ुशी से १९.१२.१९२७ को फाँसी चढ़ा. बड़ा सुन्दर और लम्बा चोडा जवान था, तगड़ा बहुत था. जेल में कुछ कमजोर हो गया था. अपने मुलाकात के समय बताया की कमजोर होने का कारण गम नहीं, बल्कि खुदा की याद में मस्त रहने की खातिर रोटी बहुत कम खाना हैं. फाँसी के एक दिन पहले आपकी मुलाकात हुई. आप खूब सजे संवरे थे. बड़े बड़े कड़े हुए केश खूब सजते थे. बड़ा हंस हंस कर बात करते रहे. अपने कहाँ कल मेरी शादी होने वाली हैं. दुसरे दिन सुबह छ बजे आपको फाँसी दी गयी. कुरान शरीफ का बस्ता लटकाकर हाजियों की तरह वजीफा पढ़ते हुए बड़े हौंसले से चल पड़े. आगे जाकर तख्ते पर रस्सी को चूम लिया. वहीँ अपने कहाँ-
“मैंने कभी किसी के खून से अपने हाथ नहीं रंगे और मेरा इंसाफ खुदा के सामने होगा. मेरे ऊपर लगाये गए इलज़ाम गलत हैं” खुदा का नाम लेते ही रस्सी खीच ली गयी और वे कूच कर गए. उनके रिश्तेदारों ने बड़ी मिन्नतों-खुसामदों से उनकी लाश ली और उन्हें शाहजहाँपूर ले गए. लखनऊ स्टेशन पर मालगाड़ी के एक डिब्बे में उनकी लाश देखने का अवसर कूच लोगों को मिला.फाँसी के दस घंटे के बाद भी उनके चेहरे पर रोनक थी. ऐसा लगता था की अभी ही सोये हों. लेकिन अशफाक शायर थे और उनका शायर उपनाम हसरत था. मरने से पहले अपने यह दो शेयर कहे थे
फना हैं हम सबके लिए, हम पै कूच नहीं मौकूफ!
बका हैं एक फकत जा-ए-किब्रिया के लिए!!
(मरना सबको हैं, हम पर कूच भी निर्भर नहीं . न मरने वाला तो सिर्फ परमात्मा हैं)
और
तंग आकार हम उनके जुल्म-ए- बेदाद से!
चल दिए सू-ए-अदम जिन्दाने फैजाबाद से!!
(शासकों के बेमिसाल दमन से तंग आकर हम फैजाबाद से दुनिया छोड़कर चले)
श्री अशफाक की और से एक माफीनामा छपा था, उसके सम्बन्ध में श्री रामप्रसाद बिस्मिल जी ने सपने आखिरी ऐलान में पोज़ीशन साफ कर दी हैं.अपने कहा की अशफाक माफीनामा तो क्या अपील के लिए भी राजी नहीं थे. अपने कहाँ था में खुदा के सिवाय किसी के आगे झुकना नहीं चाहता.परन्तु रामप्रसाद के कहने सुनने से आपने वही सब कुछ लिखा था. वर्ना मौत का उन्हें दर या भय नहीं था. उपरोक्त हाल पड़कर पाठक भी यह बात समझ सकते हैं. आप शाहजहाँपूर के रहने वाले थे और आप रामप्रसाद के दायें हाथ थे, मुस्लमान होने के बावजूद आपका कट्टर आर्यसमाजी धर्म से हद दर्जे का प्रेम था. दोनों प्रेमी एक बड़े काम के लिए आपने प्राण उत्सर्ग कर अमर हो गए.
श्री रामप्रसाद बिस्मिल
रामप्रसाद बिस्मिल बड़े होनहार नौजवान थे. गजब के शायर थे. देखने में भी बहुत सुंदर थे. योग्य बहुत थे. जानने वाले कहते हैं की यदि किसी और जगह या किसी और देश या किसी और समय पैदा हुए होते तो सेना अध्यक्ष होते. आपको पूरे षडयन्त्र का नेता माना गया हैं.चाहे बहुत ज्यादा पढ़े हुए नहीं थे, लेकिन फिर भी पंडित जगत नारायण जैसे सरकारी वकील की सुध बुध भुला देते थे. चीफ़ कोर्ट की अपनी अपील खुद ही लिखी थी, जिससे की जजों को कहना पड़ा की इसे लिखने में जरुर ही किसी बहुत बुद्धिमान व योग्य व्यक्ति का हाथ हैं. १९ तारीख की शाम कप आपको फाँसी दी गयी. १८ की शाम को जब आपको दूध दिया गया तो आपने यह कहकर इंकार कर दिया की अब मैं माँ का दूध ही पियूँगा. १८ को आपकी मुलाकात हुई. माँ को मिलते ही आपकी आँखों से अश्रु बह चले. माँ बहुत हिम्मत वाली देवी थी. आपसे कहने लगी- हरिश्चंद्र, दधिची आदि बुजुर्गों की तरह वीरता, धर्म वह देश के लिए जान दे, चिंता करने और पछताने की जरुरत नहीं. आप हँस पड़े. कहाँ! माँ मुझे क्या चिंता और पछतावा, मैंने कोई पाप नहीं किया. में मौत से नहीं डरता लेकिन माँ! लेकिन माँ आग के पास रखा घी पिघल ही जाता हैं. तेरा मेरा सम्बन्ध ही कुछ ऐसा हैं की पास होते ही आँखों में अश्रु उमर पड़े. नहीं तो में बहुत खुश हूँ. फाँसी पर ले जाते समय आपने बड़े जोर से कहाँ ‘वन्दे मातरम’ ‘भारत माता की जय ‘ और शांति से चलते हुए कहाँ-
मालिक तेरी रजा रहे और तू ही रहे
बाकि न में रहूँ, न मेरी आरजू रहे
जब तक की तन में जान रगों में लहूँ रहे
तेरी ही जिक्र-ए-यार , तेरी जुस्तजू रहे!
फाँसी के तख्ते पर खड़े होकर आपने कहाँ-
(मैं ब्रिटिश राज्य का पतन चाहता हूँ )
फिर ईश्वर के आगे प्रार्थना की और फिर एक मंत्र पढना शुरू किया. रस्सी खिंची गयी. रामप्रसाद जी फाँसी पर लटक गए. आज वह वीर इस संसार में नहीं हैं. उसे अंग्रेजी सरकार ने अपना खौफनाफ दुश्मन समझा. आम ख्याल यह हैं की उसका कसूर यही था की वह हलम देश में जन्म लेकर भी बड़ा भरी भोझ बन गया था और लड़ाई की विद्या से खूब परिचित था. आपको मैनपुरी षडयन्त्र ने नेताश्री गेंदालाल दीक्षित जैसे शूरवीर ने विशेष तौरपर शिक्षा देकर तैयार किया था. मैनपुरी के मुक़दमे के समय आप भाग कर नेपाल चले गए थे. अब वही शिक्षा आपकी मृत्यु का एक बड़ा कारण हो गयी. ७ बजे आपकी लाश मिली और बड़ा भरी जुलूस निकला गया. स्वदेश प्रेम में आपकी माता नें कहाँ-
“मैं आपने पुत्र की मृत्यु पर प्रसन्न हूँ, दुखी नहीं. में श्री रामचंद्र जैसा ही पुत्र चाहती थी.बोलो श्री रामचंद्र की जय”
इत्र-फुलेल और फूलों की वर्षा के बीच उनकी उनकी लाश का जुलूस जा रहा था. दुकानदारों ने उनके ऊपर से पैसे फेकें. ११ बजे आपकी लाश शमशान भूमि पहुंची और अंतिम क्रिया समाप्त हुई.
आपके पत्र का आखिरी हिस्सा आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं -
“मैं खूब सुखी हूँ. १९ तारीख को प्रात: जो होना हैं उसके लिए तैयार हूँ . परमात्मा खाफी शक्ति देंगे.मेरा विश्वास हैं की लोगों की सेवा के लिए फिट जल्द ही जन्म लूँगा. सभी से मेरा नमस्कार कहें. दया कर इतना काम और भी करना की मेरी और से पंडित जगतनारायण (सरकारी वकील जिसने इन्हें फाँसी लगवाने के लिए बहुत जोर लगाया था) को अंतिम नमस्कार कह देना. उन्हें हमारे खून से लथपथ रूपए से चैन की नींद आये. बुढ़ापे में ईश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे.”
रामप्रसाद की सारी हसरतें दिल ही दिल में रह गयी.फाँसी से दो दिन पहले से सी. आई. डी. के मिस्टर हैमिल्टन आप लोगों की मिन्नतें करते रहे की आप मौखिक रूप से सब बातें बता दो, आपको पांच हज़ार रुपया नकद दे दिया जायेगा और सरकारी खर्च पर विलायत भेजकर बैरिस्टर की पढाई करवाई जाएगी. लेकिन आप कब इन बातों की परवाह करने वाले थे.आप हुकुमतों को ठुकराने वाले व कभी कभार जन्म लेने वाले वीरों में से थे. मुक़दमे के दिनों में आपसे जज ने पूछा था,’ आपके पास क्या डिग्री हैं? तो आपने हँसकर जवाब दिया “सम्राट बनने वालों को डिग्री की कोई जरुरत नहीं होती, क्लाइव के पास भी कोई डिग्री नहीं थी.” आज वह हमारे बीच नहीं हैं. आह!!
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