Saturday 1 June 2013

आज फिर पटेल याद आ गए


डॉ विवेक आर्य
ओवैसी इस नाम से चंद दिनों पहले तक शायद ही कोई हैदराबाद अथवा आंध्र प्रदेश के बाहर परिचित था। परन्तु आज सबको मालूम हो गया हैं की ओवैसी के नाम से अकबरुद्दीन और असदुद्दीन वे दो भाई हैं जो मुस्लिम वोटों की खातिर इस देश के बहुसंख्यक हिंदुयों को सरेआम मिटाने की बात करते हैं, जो हिन्दुओं के अराध्य प्रभु रामचन्द्र जी महाराज के विषय में अभद्र भाषा का प्रयोग करने से भी पीछे नहीं हटते हैं। पाठक सोच रहे होगे जिस अत्याचार की यह लोग बात कर रहे हैं वह कभी संभव ही नहीं हैं पर यह भी एक अटल सत्य हैं की हिंदुयों का इतिहास काफी कमज़ोर होता हैं। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ 1947 से पहले के हैदराबाद स्टेट की जिस पर एक समय विश्व के सबसे अमीर आदमियों में से एक मतांध और संकीर्ण सोच वाला निज़ाम राज्य करता था। निज़ाम के राज्य में 95 प्रतिशत जनसँख्या हिन्दुओं की थी और मुसलमानों की संख्या केवल 5 प्रतिशत उसके विपरीत राज्य की 95 प्रतिशत सरकारी नौकरियों पर मुसलमानों का कब्ज़ा था और केवल 5 प्रतिशत छोटी नौकरियों पर हिन्दुओं को अनुमति थी। निज़ाम के राज्य में हिन्दुओं को किसी भी प्रकार से मुस्लमान बनाने के लिए प्रेरित किया जाता था। हिन्दू अपने त्योहार बिना पुलिस की अनुमति के नहीं बना सकते थे, किसी भी मंदिर पर लाउड स्पीकर लगाने की अनुमति न थी, किसी भी प्रकार का धार्मिक जुलूस निकालने की अनुमति नहीं थी क्यूंकि इससे पाँच वक्त के नमाज़ी मुसलमानों की नमाज़ में व्यवधान पड़ता था। हिन्दुओं को अखाड़े में कुश्ती तक लड़ने की अनुमति न थी। कारण स्पष्ट था की अगर हिन्दू बलशाली हो गए तो वे बल से इस अत्याचार का प्रतिरोध करेगे। जो भी हिन्दू इस्लाम स्वीकार कर लेता तो उसे नौकरी/ छोकरी /जायदाद सब कुछ निज़ाम राज्य की और से दिया जाता था। तबलीगी का काम जोरो पर था और इस अत्याचार का विरोध करने वालों को पकड़ कर जेलों में ठूस दिया जाता था जिनकी सज़ा एक अरबी पढ़ा हुआ क़ाज़ी शरियत के अनुसार सदा कुफ्र हरकत के रूप में करता था। जो भी कोई हिन्दू अख़बार अथवा साप्ताहिक पत्र के माध्यम से निज़ाम के अत्याचारों को हैदराबाद से बाहर अवगत कराने की कोशिश करता था तो उस पर छापा डाल कर उसकी प्रेस जब्त कर ली जाती, उसे जेल में डाल दिया जाता और मोटा हर्जाना वसूला जाना आम बात थी। जब भारत की आबोहवा में पाकिस्तान का नाम लिया जाने लगा तो निज़ाम की मतान्धता में कई गुना की वृद्धि हुई और अपने अत्याचारों को मासूम प्रजा पर जिहादी तरीके से लागू करने के लिए उसने रजाकार के नाम से एक सेना बनाई जो हथियार लेकर गलियों में झुण्ड के झुण्ड बनाकर जिहादी नारे लगते हुए गश्त करने लगे। उनका मकसद केवल एक ही था। हिन्दू प्रजा पर दहशत के रूप में टूट पड़ना। इन रजाकारों का नेतृत्व कासिम रिज़वी नाम का एक मतान्ध मुसलमान कर रहा था। इन रजाकारों ने अनेक हिन्दुओं को बड़ी निर्दयता से हत्या की थी।हज़ारों अबलाओं का बलात्कार किया गया, हजारों निरपराध हिन्दू बच्चो को पकड़ कर सुन्नत तक कर दिया था । यहाँ तक की जनसँख्या का संतुलन बिगाड़ने के लिए बाहर से लाकर मुसलमानों को बसाया गया था। आर्यसमाज के हैदराबाद के प्रसिद्द नेता भाई श्यामलाल वकील की जेल में डालकर अमानवीय अत्याचार कर जहर द्वारा हत्या कर दी गयी। MIM - Majlis-e-Ittehād-ul Muslimīn की स्थापना 1927 में निज़ाम की सलाह पर उसके कुछ बाशिंदों ने करी थी जिसकी कमान बाद में कासिम रिज़वी के हाथ में आ गयी थी। आर्यसमाज ने 1939 में इस अत्याचार के विरुद्ध अहिंसात्मक अन्द्लन हिंदुओ पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध किया। पूरे भारत से 7.5 हज़ार आर्य क्रांतिकारियों ने निज़ाम की जेलों को भर दिया जिससे की निज़ाम के राज्य में किसी अपराधी को जेल में रखने का स्थान न बचा। अहिंसा का मंत्र जपने वाले महात्मा गाँधी ने आर्यसमाज का खुलकर हैदराबाद सत्याग्रह करने पर विरोध किया जि

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