Friday, 21 June 2013

प्राकृतिक आपदाएँ और ईश्वर




उत्तराखंड में वर्षा और भूसख्लन आदि से भयानक त्रासदी हुई हैं। हजारों व्यक्ति लापता हैं और करोड़ो रुपये की संपत्ति नष्ट हो गई हैं। ऐसे विपदा काल में भी कुछ दूषित मनोवृति वाले व्यक्ति वहाँ की जनता का सहयोग करने के स्थान पर अपनी अपनी डपली और अपना अपना राग अलाप रहे हैं। अपने आपको नास्तिक कहने वाले व्यक्ति कह रहे हैं की अगर ईश्वर होते तो केदारनाथ के मंदिर और अपने भक्तों की रक्षा अवश्य करते? परन्तु ऐसा नहीं हुआ इसलिए ईश्वर का कोई अस्तित्व ही नहीं हैं।
अपने आपको अम्बेडकरवादी कहने वाले कह रहे हैं की हिन्दुओं के अशक्त भूदेवताओं का असलियत सामने आ गई , वे अपने मानने वाले भक्तों की रक्षा करने में असमर्थ हैं। मेरा उनसे एक सामान्य सा प्रश्न हैं की कुछ वर्ष पहले उन देशों में सुनामी का कहर बरपा था जो बौद्ध मत को मानते हैं, जापान भी एक बुद्ध देश हैं में तो अभी हाल ही में भूकंप और सुनामी से हजारों बुद्ध मत को मानने वालो की मृत्यु हो गई थी। क्या हम उनसे यह कहे की उस समय महात्मा बुद्ध कहा थे जब बुद्ध देशों पर कहर बरपा था। अफगानिस्तान,पाकिस्तान आदि में लाखों बुद्ध मठ और मंदिरों का विध्वंश इस्लामिक आक्रमण करने वालो द्वारा हो चूका हैं, उस समय बुद्ध कहा थे?
कुछ मुस्लमान भाई तो सदा ऐसे ही मौकों के प्रयास में रहते हैं जिससे हिन्दू समाज की निंदा की जा सके। वे क्यूँ भूल जाते हैं की अनेकों बार मक्का में हज यात्रा के अवसर पर अफरा तफरी फैल जाती जिसमे अनेकों हज यात्रियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता हैं। उस समय कुरान में वर्णित ईश्वर यानि की अल्लाह कोई चमत्कार क्यूँ नहीं दिखाते।
इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये हमें ईश्वर की कर्म फल व्यवस्था को समझना होगा। हम सब जानते हैं की हमारे जीवन में जो कुछ भी घट रहा हैं वह हमारे अच्छे अथवा बुरे कर्मों का ही फल हैं। एक विद्यार्थी परीक्षा में अच्छे अंकों से तभी पास होता हैं जब वह उचित परिश्रम करता हैं। एक व्यापारी व्यापार में आमदनी और परिश्रम करने से ही आगे बढ़ पाता हैं। यह जग जाहिर हैं और इसे सभी मानते हैं। यह तो हुई उन कर्मों की बात जो हम अभी कर रहे हैं और उनका फल हमें भविष्य में मिलेगा, ठीक उसी प्रकार जो फल हम अभी भोग रहे हैं वह या तो इस जन्म में या उससे पिछले जन्म में किये गये कर्मों का ही तो फल हैं। यही ईश्वर की कर्मफल व्यवस्था हैं। अब प्राकृतिक आपदा और ईश्वर के सम्बन्ध को लीजिये। सृष्टी की रचना ईश्वर ने मनुष्य के भोगों के लिए की हैं। भोग का अर्थ यहाँ पर यह नहीं हैं की मनुष्य जैसा चाहे वैसा करे अपितु उसका अर्थ यह हैं की मनुष्य को संसाधनों का दोहन उतना ही करना चाहिए जितना की आवश्यक हो और उससे संसाधन विलुप्त न हो।
उत्तराखंड में जो हुआ उसका दोष ईश्वर को देना सबसे बड़ी अज्ञानता इसलिए हैं क्यूंकि मनुष्य ने वहाँ प्रकृति का अनुचित दोहन किया, पेड़ काट डाले, बांध बना डाले जबकि पर्यावरण वैज्ञानिकों ने स्पष्ट रूप से ऐसा न करने कि चेतावनी दी थी क्यूंकि पर्वतों की मिटटी उथली होती हैं और वर्षा ऋतु में नदीयाँ विकराल रूप धारण करती हुई, अत्यंत वेग से पहाड़ों को काटती हुई अपने मार्ग में आने वाली सभी अवरोधों को तहस नहस कर डालती हैं।
ऐसे परिस्थिति में पेड़ आदि को काटने से सभी अवरोध नष्ट हो जाते हैं जिसके कारण यह प्राकृतिक आपदा होती हैं।
प्रकृति और मनुष्य का सम्बन्ध किस प्रकार का हैं, प्रकृति और मनुष्य का सम्बन्ध राजा के खजाने के खजांची और खजाने के जैसा हैं। यहाँ राजा ईश्वर हैं जिन्होंने प्रकृति रूपी खजाने को अपने खजांची अर्थात मनुष्य को देखरेख और इस्तेमाल करने के लिए दे दिया हैं। अब यह खजांची का कर्तव्य हैं की उस खजाने को उचित रूप से प्रयोग करे और जैसे ही खजांची उस खजाने का गलत प्रयोग करना आरम्भ कर देता हैं तो खजाने का हिसाब-किताब बिगड़ जाता हैं। मनुष्य भी जैसे ही प्रकृति से ईश्वर की आज्ञा के प्रतिकूल होकर उसे नष्ट करने लगता हैं वैसे ही प्रकृति बाढ़, भूस्खलन, अकाल आदि के रूप में अपना कोप प्रदर्शित करती हैं।
इस साधारण से सम्बन्ध को न समझ कर नास्तिक लोग ईश्वर के न होने का कुतर्क देते हैं जो की अज्ञानता को बढ़ावा देने के समान हैं। जबकि यहाँ पर ईश्वर की कर्म फल व्यवस्था स्पष्ट रूप से प्रतीत हो रही हैं।
ईश्वर का कार्य आपको निर्देशित करना हैं , इस निर्देश को ही ईश्वर द्वारा रक्षा करना कहते हैं। जैसे एक अध्यापक कक्षा में पाठ पढ़ा कर छात्रों को स्मरण करने का निर्देश दे देते हैं पर जो विद्यार्थी अध्यापक की आज्ञा का पालन नहीं करता और पाठ को याद नहीं करता वह परीक्षा में फेल हो जाता हैं , उस विद्यार्थी के माता-पिता फेल हो जाने पर उन अध्यापक को नहीं कोसते अपितु उस विद्यार्थी को ही दोषी मानते हैं।
ईश्वर, जीव और प्रकृति तीनों भिन्न भिन्न सत्ता हैं। ईश्वर द्वारा रक्षा करने का जहाँ तक प्रश्न हैं तो ईश्वर रक्षा करते हैं परन्तु कैसे। ईश्वर रक्षा करते हैं आपको संचेत करके, आपको किसी ही गलत कार्य के दुष्परिणामों से पहले ही अवगत कराकर, आपको आत्मबोध द्वारा उस कार्य को करने से रोकते हैं पर जब मनुष्य ईश्वर की आज्ञा का पालन नहीं करता तब ईश्वर उसका दंड भी अवश्य देते हैं। यही कर्म फल व्यवस्था का अटल सिद्धांत हैं। इस दंड से बचने का कोई भी उपाय नहीं हैं, इस दंड से बचने का कोई भी विधान नहीं हैं। इसलिए सबसे उत्तम हैं की इस प्रकार के कर्म को ही करने से बचा जाना चाहिए। ठीक उसी प्रकार किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा ईश्वर की आज्ञा का अनुपालन से, प्रकृति से नाजायज छेड़-छाड़ से होती हैं तो फिर उसका दोष ईश्वर को क्यूँ देना।

डॉ विवेक आर्य

4 comments:

  1. But those who dead had not cut tree.. why they got this punishment? Do Lord blind??

    ReplyDelete
    Replies
    1. Those who r cursing GOD endlessly becoz of people dying in bulk in kedarnath..its all is because of their "Karma" in their previous lifes nd births.
      See the context of Geeta Below



      GITA
      4.5
      bahuni me vyati-tani janmaani tav cha-rjuna.
      Ta-anyahm Ved sarvani na tvam vetha parantapah.

      Matlab

      1. Mere aur tere bahut se janm ho chuke hain. Un sabko tu nahi jaanta par main jaanta hun.


      Aapne Gita 4.5 dhyan se nahi pdha.
      Aapko pichhkle janmo ka nahi ptaparantu bhagwan ko to pta hai.
      Ab shastro mein saaf likha hai ki agr aap kisi pashu ki gala ret kar hatya kroge to yaa to usi janm mein aapke sath waisa hoga ya firagle janm mein aapka gala reta jayega..parantuutna bhugtna to pdega hi.
      Ab kuchh log ye bhi tarq dete hainki christianity aur muslims mein topunarjanm nhi hota to unka kya system hai?? To bhai mere, prakreeti waise thode hi chalti hai?
      Ye to wohi baat ho gyi ki south pole par rhne wala ye kahe ki main to maanta hi nahi ki dharti par koi aisi bhi jagah hogi jahan logo ko paseena aata hoga. Mujje to nahi aata
      bhai mere, hum jahan tk sochte hain duniya us se bahut aage tk hai..


      Jo aaya hai, uska jana nishchit hai.
      Gita
      2.27
      jatasya hi dhruvo mrityu dhurvam janm mritsya cha
      tasmaad-pariharye-rthe na tvam shochitum-arhasi
      -"
      janm huye ki mrity nishchit hai aur mare huye ka janm bhi nishchit hai. Isliye is bina upay wale vishay mein tu shok karne k yogya nahi hai"


      2.22
      vasam-asi Jirnani
      yatha vihay
      navani grehnaati
      naro-parani.
      Tatha shareraani vihay Jirna-.
      Nyana-ani sanyati navani Dehi.
      Matlb
      "jaise manusya puraane vastro ko tyag kr dusre naye vastro ko grahan krta hai, thik waise hi jeevatma puraane shariron ko tyaag kr dusre naye shareero ko prapt hoti hai"

      Delete
  2. did u really go dere and asked dem abt dere sins or wether they have contributed to the natural misery in one or d oder way..we have disrupted the ecology of mother nature...and she will correspond to us in d same way...

    ReplyDelete
  3. Those who r cursing GOD endlessly becoz of people dying in bulk in kedarnath..its all is because of their "Karma" in their previous lifes nd births.
    See the context of Geeta Below



    GITA
    4.5
    bahuni me vyati-tani janmaani tav cha-rjuna.
    Ta-anyahm Ved sarvani na tvam vetha parantapah.

    Matlab

    1. Mere aur tere bahut se janm ho chuke hain. Un sabko tu nahi jaanta par main jaanta hun.


    Aapne Gita 4.5 dhyan se nahi pdha.
    Aapko pichhkle janmo ka nahi ptaparantu bhagwan ko to pta hai.
    Ab shastro mein saaf likha hai ki agr aap kisi pashu ki gala ret kar hatya kroge to yaa to usi janm mein aapke sath waisa hoga ya firagle janm mein aapka gala reta jayega..parantuutna bhugtna to pdega hi.
    Ab kuchh log ye bhi tarq dete hainki christianity aur muslims mein topunarjanm nhi hota to unka kya system hai?? To bhai mere, prakreeti waise thode hi chalti hai?
    Ye to wohi baat ho gyi ki south pole par rhne wala ye kahe ki main to maanta hi nahi ki dharti par koi aisi bhi jagah hogi jahan logo ko paseena aata hoga. Mujje to nahi aata
    bhai mere, hum jahan tk sochte hain duniya us se bahut aage tk hai..


    Jo aaya hai, uska jana nishchit hai.
    Gita
    2.27
    jatasya hi dhruvo mrityu dhurvam janm mritsya cha
    tasmaad-pariharye-rthe na tvam shochitum-arhasi
    -"
    janm huye ki mrity nishchit hai aur mare huye ka janm bhi nishchit hai. Isliye is bina upay wale vishay mein tu shok karne k yogya nahi hai"


    2.22
    vasam-asi Jirnani
    yatha vihay
    navani grehnaati
    naro-parani.
    Tatha shareraani vihay Jirna-.
    Nyana-ani sanyati navani Dehi.
    Matlb
    "jaise manusya puraane vastro ko tyag kr dusre naye vastro ko grahan krta hai, thik waise hi jeevatma puraane shariron ko tyaag kr dusre naye shareero ko prapt hoti hai"

    ReplyDelete