स्वामी दयानंद की वेद भाष्य को देन -भाग ६
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क्या वेदों में वर्णित सोमरस के रूप में शराब (alcohol) अथवा अन्य मादक पद्यार्थ के ग्रहण करने का वर्णन हैं?
क्या वेदों में वर्णित सोमरस के रूप में शराब (alcohol) अथवा अन्य मादक पद्यार्थ के ग्रहण करने का वर्णन हैं?
डॉ विवेक आर्य
पाश्चात्य विद्वानों ने वेदों में सोम रस की तुलना एक जड़ी बूटी से की हैं
जिसको ग्रहण करने से नशा हो जाता हैं. वैदिक ऋषि सोम रस को ग्रहण कर नशे में झूम
जाते थे. इस प्रकार से विधर्मी लोग वेदों में सामान्य जन की श्रद्धा को कम करने के
लिए वेदों में सोम अर्थात शराब पीने का प्रावधान कहकर अज्ञान में भटकतें रहते
हैं.
ऋषि दयानंद ने अपने वेद भाष्य में सोम शब्द का अर्थ प्रसंग अनुसार ईश्वर,
राजा, सेनापति, विद्युत्, वैद्य, सभापति, प्राण, अध्यापक, उपदेशक इत्यादि किया हैं.
कुछ स्थलों में वे सोम का अर्थ औषधि, औषधि रस और सोमलता नमक औषधि विशेष भी करते
हैं, परन्तु सोम को सूरा या मादक वास्तु के रूप में कहीं ग्रहण नहीं किया
हैं.
ऋग्वेद ९/११४/२ में सोम को लताओं का पति कहाँ हैं.
ऋग्वेद ९/९७/३३ में सोम के लिए सुपर्ण विशेषण
प्रयुक्त हैं.
ऐतरेय ब्राह्मन के अनुसार चंद्रमा को सोम का पर्याय बताया गया हैं .
ऋग्वेद १०/८५/१ में सोम की स्थिति धुलोक में बताई हैं. यह भी कहाँ गया हैं की
वह १५ दिन तक बढता रहता हैं और १५ दिन तक घटता रहता हैं.
ऋग्वेद १०/८५/२ और ऋग्वेद १०/८५/४ में भी सोम की तुलना चंद्रमा से की गयी
हैं.
परन्तु जो सोम की तुलना शराब से करते हैं वे
शतपथ ५/१/२ के अनुसार सोम अमृत हैं तो सुरा विष हैं पर विचार करे.
तैतरीय उपनिषद् के अनुसार वास्तविक सोमपान तो प्रभु भक्ति हैं जिसके रस को
पीकर प्रभुभक्त आनंदमय हो जाता हैं.
ऋग्वेद ८/४८/३ इस कथन की पुष्टि करते हुए कहता हैं – हमने सोमपान कर लिया हैं,
हम अमृत हो गए हैं, हमने ज्योति को प्राप्त कर लिया हैं, विविध दिव्यताओं को हमने
अधिगत कर लिया हैं. हे अमृतमय देव मनुष्य की शत्रुता या धूर्तता अब हमारा क्या कर
लेगी?
ऋग्वेद ६/४७/१ और अथर्ववेद १८/१/४८ में कहाँ गया हैं परब्रह्मा की भक्ति रूप
रस सोम अत्यंत स्वादिष्ट हैं, तीव्र और आनंद से युक्त हैं, इस ब्रह्मा सोम का जिसने
पण कर लिया हैं, उसे कोई पराजित नहीं कर सकता.
ऋग्वेद ८/९२/६ – इस परमात्मा से सम्बन्ध सोमरस का पान करके साधक की आत्मा
अद्भुत ओज, पराक्रम आदि से युक्त हो जाती हैं ,वह सांसारिक द्वंदों से ऊपर उठ जाता
हैं.
इस प्रकार वेद मन्त्रों से यह सिद्ध होता हैं की सोमरस कोई मादक पद्यार्थ नहीं
हैं .फिर भी अगर किसी के मन में वेदों में शराब अथवा
नशीली वास्तु ग्रहण करने को शंका हैं तो वेद भगवन स्पष्ट रूप से शराब पीने की मनाही
करते हैं तो निम्न्किखित वेद मन्त्र में सोमरस और सूरा को विपरीत बताया गया
हैं. सोमरस पुष्टि, अह्र्लाद तथा बुद्धि वर्धकता
आदि उत्तम गुण उत्पन्न करता हैं, सुरापान के समान दुर्मद उत्पन्न नहीं करता अर्थात
जैसे सूरा (शराब) बुद्धिनाशक तथा शरीरगत बलनाशक होती हैं वैसा सोमरस नहीं, इसलिए हे
कर्म योगिन . स्तोता लोग उक्त रसपान के लिए आपसे प्रार्थना करते हैं की कृपा करके
इसको ग्रहण करे. ऋग्वेद ८.२.१२.
इस प्रकार वेदों के ही प्रमाणों से यह स्पष्ट सिद्ध होता हैं की सोम रस शराब
आदि मादक पदार्थ नहीं हैं.
विधर्मियों द्वारा वेदों की अपकीर्ति फैलाने के लिए एक दुष्ट निरर्थक प्रयास
मात्र हैं.
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