Saturday, 8 June 2013

हिन्दू जाती का वीर रक्षक – वीर नाथूराम जी

हिन्दू जाती का वीर रक्षक – वीर नाथूराम जी
आग में पड़कर
भी सोने की दमक जाती नहींI
काट देने से भी हीरे की चमक जाती नहीं I
वीर नाथूराम का जन्म १ अप्रैल १९०४ को हैदराबाद सिंध प्रान्त में हुआ था I
आपके पिता पंडित कीमतराय जी के आप इकलोते पुत्र थे I पंजाब में उठे आर्य समाज के
क्रन्तिकारी आन्दोलन से आप प्रभावित होकर १९२७ में आप आर्यसमाज में सदस्य बनकर
कार्य करने लगें I उन दिनों इस्लाम और ईसाइयत को मानने वाले हिन्दुओं को अधिक से
अधिक धर्म परिवर्तन कर अपने मत में सम्मिलित करने की फिराक में रहते थे I १९३१ में
अहमदिया (मिर्जाई) मत की अंजूमन ने सिंध में कुछ विज्ञापन निकल कर हिन्दू धर्म और
हिन्दू वीरों पर गलत आक्षेप करने शुरू कर दिए I जिसे पड़कर आर्यवीर नाथूराम से रहा
न गया और उन्होंने इसाइयो द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘तारीखे इस्लाम’ का उर्दू से
सिन्धी में अनुवाद कर उसे प्रकाशित किया और एक ट्रैक लिखा जिसमे मुसलमान मौल्वियो
से इस्लाम के विषय में शंकाऐ पूछी गयी थी I ये दोनों साहित्य नाथूराम जी ने निशुल्क
वितरित करे I इससे मुसलमानों में खलबली मच गयी I उन्होंने भिन्न भिन्न स्थानों में
उनके विरुद्ध आन्दोलन शुरू कर दिया I इन हलचलों और विरोध का परिणाम हुआ की सरकार ने
नाथूराम जी पर अभियोग आरंभ कर दिया I नाथूराम जी ने कोर्ट में यह सिद्ध किया की
प्रथम तो ये पुस्तक मात्र अनुवाद हैं इसके अलावा इसमें जो तर्क दिए गए हैं वे सब
इस्लाम की पुस्तकों में दिए गए प्रमाणों से सिद्ध होते हैं I जज ने उनकी दलीलों को
अस्वीकार करते हुए उन्हें १००० रूपये दंड और कारावास की सजा सुनाई I इस पक्षपात
पूर्ण निर्णय से सारे सिंध में तीखी प्रतिक्रिया हुई I इस निर्णय के विरुद्ध चीफ़
कोर्ट में अपील करी गयीI
२० सितम्बर १९३४ को कोर्ट में जज के सामने नाथूराम
जी ने अपनी दलीले पेश करी I अब जज को अपना फैसला देना था Iतभी एक चीख से पूरी अदालत
की शांति भंग हो गयीI अब्दुल कय्यूम नामक मतान्ध मुस्लमान ने नाथूराम जी पर चाकू से
वार कर उन्हें घायल कर दिया जिससे वे शहिद हो गएI चीफ जज ने वीर नाथूराम के मृत देह
को सलाम किया I बड़ी धूम धाम से वीर नाथूराम की अर्थी निकली I हजारो की संख्या में
हिन्दुओ ने वीर नाथूराम को विदाई दीI अब्दुल कय्यूम को पकड़ लिया गया I उसे बचाने की
पूरजोर कोशिश की गयी मगर उससे फंसी की सजा हुई I


उसकी लाश को कब्र से निकाल कर मतान्ध मुसलमानों ने उसका जुलुस
निकालाI मजहबी जोश में इतना हो हल्ला किया गया की दंगे जैसे स्थिति उत्पन्न हो गयी
I सरकार को सेना बुला कर स्थिति को संभालना पड़ा I मुस्लिम समाचार पत्र अब्दुल को
सही और गाजी करार देने में लगे रहे जबकि हिन्दू समाचार पत्रों ने वीर बलिदानी की यश
गाथा गई I वीर हकीकत राय और वीर राजपाल के बलिदान की यादें ताजा हो गयी
I
वीर नाथूराम जी एक धीर, उत्साही आर्य युवक थे I न्याय मार्ग पर चलते हुए
उन्हें परमेश्वर के अलावा किसी का डर नहीं था I उनमे स्वाभिमान कूट-कूट भरा था I
हिन्दू जाती पर करे गए अश्लील आक्रमण का उन्होंने वीरता पूर्ण तरीके से उत्तर दिया
I प्राण दिए पर मान नहीं दिया I अपने बलिदान से उन्होंने आर्य जाती का मस्तक ऊँचा
कर दिया I आज भी वीर नाथूराम जी का बलिदान हिन्दू युवको को सांप्रदायिक ताकतों के
खिलाफ लड़ने में प्रकाश स्तम्भ का काम दे रहा हैं I

भगत छनकू राम- हिन्दुत्व के लिए प्राण न्योछावर करने वाली महान आत्मा

यह घटना उनीसवीं सदी के शुरुआत में बहावलपुर (आज के पाकिस्तान में) की मुसलमानी रियासत की है. छनकू नाम का एक दुकानदार इस रियासत में था जो राम का भक्त था. एक बार कुछ जिहादियों ने इसकी दुकान से कुछ सामान माँगा और इसके तौलने पर तौल कम बताकर इसे राम की गाली दी. इस रामभक्त ने सहन न होने पर पैगम्बर ए इस्लाम पर कुछ कह दिया. जिहादियों ने क़ाज़ी (इस्लामी न्यायाधीश) तक बात पहुंचा दी जिस पर क़ाज़ी का फतवा आया कि या तो इस्लाम क़ुबूल करे या मौत. इसने जवाब में कहा कि राम के भक्त रसूल के भक्त नहीं बन सकते! बस इस पर इसे संगसार (आधा जमीन में गाढ़ कर आधे पर चारों तरफ से पत्थर मार मार कर मार डालना) करने की सजा हुई और चारों ओर से पत्थर बरसा कर इसे कुचल दिया गया. धर्म पर यह बलिदान हकीकत राय के बलिदान से भी बढ़कर है. आज के सब हिन्दुस्तानी हिंदू मुसलमानों को फख्र करना चाहिए कि उनके पूर्वजों ने किस तरह अपने धर्म की रक्षा की. [यह कविता १९२० के दशक (दहाई) में बहुत से उर्दू अखबारों में छपी.]

कहूँ क्योंकर था रियासत का हकीकत छनकू
बढ़के थी तेरी हकीकत से शहादत छनकू
सह गया तू जो मिली तुझको अजियत छनकू
लैब पै आया न तिरे हरफे शिकायत छनकू

तोल कम था? कि तुझे झूठे गिले की चिढ थी
गाली के बदले जो दी तूने यकायक गाली

गाली देना तो कभी था न तेरी आदत में
और न कुछ बदला चुका देना ही था तीनत में
जाय शक क्या तेरी पाकीजगीय फितरत में
जलवा गर एक अदा गाली की थी सूरत में

गाली देने का चखाना ही था बदगों को मजा
लुत्फ़ कुछ उसको भी मालूम हो बदगोई का

राम से तेरी मुहब्बत का न था कुछ अंदाज
लो धर्म में तेरी अकीदत का न था कुछ अंदाज
तेरी हिम्मत का शजाअत का न था कुछ अंदाज
सबर का जौके सदाकत का न था कुछ अंदाज

तुझ पै थूका भी घसीटा भी तुझे मारा भी
बल बे मर्दानगी तेरी! तू कहीं हारा भी?

नेकदिल काजी था बोला कोई भंगड़ होगा
कब भले चंगे को यूँ हौंसला बोहराने का
कोठरी पास थी छनकू को यहाँ भिजवाया
और कहा नशा उतरने पे उसे पूछूंगा

देते थे मशवरा सब स्याने मुकर जाने को
पर तुला बैठा था तू धर्म पर मर जाने को

रोंगटा रोंगटा तकला है वहीँ बन जाता
छेदना तेरी जबाँ का है जहाँ याद आता
हाय इस दर्द में भी तो नहीं तू घबराता
इक कदम राहे सच से नहीं बाज आता

गर्म लोहे ने है गरमाया लहू को तेरे
सिदक छिन छिन के टपकता है पड़ा छेदों से

कहते हैं होने को दींदार, पै याँ किस को कबूल
राम के भगत भी होते हैं परस्तारे रसूल?
माल क्या चीज है? डाली है यहाँ जीने पै वसूल
धर्म जिस जीने से खो जाय, वो जीना है फजूल

धर्म की राह में मर जाते हैं मरने वाले
मरके जी उठते हैं जी जाँ से गुजरने वाले

दे दिया काजी ने फतवा इसे मारो पत्थर
गाड़कर आधे को आधे पे गिराओ पत्थर
दायें से बाएं से हर पहलू से फैंको पत्थर
और पत्थर भी वो फैंको इसे कर दो पत्थर

पत्थरों की थी बरसती तिरे सर पर बोछाड
और तू साकत था खड़ा जैसे तलातम में पहाड़

राम का नाम था क्या गूँज रहा मैदां में
नाखुदा भूला न था डूबते को तुगयां में
एक रट थी कि न रूकती थी किसी तूफां में
एक भी छेद न हुआ भगति के दामां में

कब अबस हाथ से बदखाह के छूटा पत्थर
धर्म पर कोड़ा हुआ तन पर जो टूटा पत्थर

एक जाबांज को हालत पै तेरी रहम आया
देखकर तुझको अजिय्यत में घिरा घबराया
और कुछ बन न पडा हाथ म्यां पर लाया
खींच कर म्यां से तलवार उसे चमकाया

आन की आन में सर तेरा जुदा था तन से
पर वही धुन थी रवां उड़ती हुई गर्दन से

जान है ऐ जाँ, तू फिर इस मार्ग पे कुर्बां हो जा
जिंदगी, छनकू की सी मौत का सामां हो जा
राम का धर्म, दयानंद का ईमां हो जा
दर्द बन दर्द, बढे दर्द का दरमाँ हो जा

देख यूँ मरते हैं इस राह में मरने वाले
मरके जी उठते हैं जी जां से गुजरने वाले

हाय छनकू का न मेला ही कहीं होता है
याद में उसकी न जलसा ही कहीं होता है
कोई तकदीर न खुतबा ही कहीं होता है
इस शहादत का न चर्चा ही कहीं होता है

दाग इस दिन के खुले रहते हैं इक सीने पर
याद आते ही बरस पड़ते हैं हर सू पत्थर II

- पंडित चमूपति

Friday, 7 June 2013

पुराणों के कृष्ण बनाम महाभारत के कृष्ण



डॉ विवेक आर्य

कृष्ण जन्माष्टमी पर सभी हिन्दू धर्म को मानने वाले भगवान श्री कृष्ण जी महाराज को याद करते हैं. कुछ उन्हें गीता का ज्ञान देने के लिए याद करते हैं कुछ उन्हें दुष्ट कौरवों का नाश करने के लिए याद करते हैं.पर कुछ लोग उन्हें अलग तरीके से याद करते हैं.

फिल्म रेडी में सलमान खान पर फिल्माया गया गाना “कुड़ियों का नशा प्यारे,नशा सबसे नशीला है,जिसे देखों यहाँ वो,हुसन की बारिश में गीला है,इश्क के नाम पे करते सभी अब रासलीला है,मैं करूँ तो साला,Character ढीला है,मैं करूँ तो साला,Character ढीला है.”

सन २००५ में उत्तर प्रदेश में पुलिस अफसर डी के पांडा राधा के रूप में सिंगार करके दफ्तर में आने लगे और कहने लगे की मुझे कृष्ण से प्यार हो गया हैं और में अब उनकी राधा हूँ. अमरीका से उनकी एक भगत लड़की आकर साथ रहने लग गयी.उनकी पत्नी वीणा पांडा का कथन था की यह सब ढोंग हैं.

इस्कोन के संस्थापक प्रभुपाद जी एवं अमरीका में धर्म गुरु दीपक चोपरा के अनुसार ” कृष्ण को सही प्रकार से जानने के बाद ही हम वलीनतीन डे (प्रेमिओं का दिन) के सही अर्थ को जान सकते हैं.

इस्लाम को मानने वाले जो बहुपत्नीवाद में विश्वास करते हैं सदा कृष्ण जी महाराज पर १६००० रानी रखने का आरोप लगा कर उनका माखोल करते हैं.

स्वामी दयानंद अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश में श्री कृष्ण जी महाराज के बारे में लिखते हैं की पूरे महाभारत में श्री कृष्ण के चरित्र में कोई दोष नहीं मिलता एवं उन्हें आपत पुरुष कहाँ हैं.स्वामी दयानंद श्री कृष्ण जी को महान विद्वान सदाचारी, कुशल राजनीतीज्ञ एवं सर्वथा निष्कलंक मानते हैं फिर श्री कृष्ण जी के विषय में चोर, गोपिओं का जार (रमण करने वाला), कुब्जा से सम्भोग करने वाला, रणछोड़ आदि प्रसिद्द करना उनका अपमान नहीं तो क्या हैं.श्री कृष्ण जी के चरित्र के विषय में ऐसे मिथ्या आरोप का अधर क्या हैं? इन गंदे आरोपों का आधार हैं पुराण. आइये हम सप्रमाण अपने पक्ष को सिद्ध करते हैं.

पुराण में गोपियों से कृष्ण का रमण करना

विष्णु पुराण अंश ५ अध्याय १३ श्लोक ५९,६० में लिखा हैं

वे गोपियाँ अपने पति, पिता और भाइयों के रोकने पर भी नहीं रूकती थी रोज रात्रि को वे रति “विषय भोग” की इच्छा रखने वाली कृष्ण के साथ रमण “भोग” किया करती थी. कृष्ण भी अपनी किशोर अवस्था का मान करते हुए रात्रि के समय उनके साथ रमण किया करते थे.
कृष्ण उनके साथ किस प्रकार रमण करते थे पुराणों के रचियता ने श्री कृष्ण को कलंकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं. भागवत पुराण स्कन्द १० अध्याय ३३ शलोक १७ में लिखा हैं -

कृष्ण कभी उनका शरीर अपने हाथों से स्पर्श करते थे, कभी प्रेम भरी तिरछी चितवन से उनकी और देखते थे, कभी मस्त हो उनसे खुलकर हास विलास ‘मजाक’ करते थे.जिस प्रकार बालक तन्मय होकर अपनी परछाई से खेलता हैं वैसे ही मस्त होकर कृष्ण ने उन ब्रज सुंदरियों के साथ रमण, काम क्रीरा ‘विषय भोग’ किया.

भागवत पुराण स्कन्द १० अध्याय २९ शलोक ४५,४६ में लिखा हैं -

कृष्णा ने जमुना के कपूर के सामान चमकीले बालू के तट पर गोपिओं के साथ प्रवेश किया. वह स्थान जलतरंगों से शीतल व कुमुदिनी की सुगंध से सुवासित था. वहां कृष्ण ने गोपियों के साथ रमण बाहें फैलाना, आलिंगन करना, गोपियों के हाथ दबाना , उनकी छोटी पकरना, जांघो पर हाथ फेरना, लहंगे का नारा खींचना, स्तन (पकरना) मजाक करना नाखूनों से उनके अंगों को नोच नोच कर जख्मी करना, विनोदपूर्ण चितवन से देखना और मुस्कराना तथा इन क्रियाओं के द्वारा नवयोवना गोपिओं को खूब जागृत करके उनके साथ कृष्णा ने रात में रमण (विषय भोग) किया.

ऐसे अभद्र विचार कृष्णा जी महाराज को कलंकित करने के लिए भागवत के रचियता नें स्कन्द १० के अध्याय २९,३३ में वर्णित किये हैं जिसका सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए मैं वर्णन नहीं कर रहा हूँ.

राधा और कृष्ण का पुराणों में वर्णन

राधा का नाम कृष्ण के साथ में लिया जाता हैं. महाभारत में राधा का वर्णन तक नहीं मिलता. राधा का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण में अत्यंत अशोभनिय वृतांत का वर्णन करते हुए मिलता हैं.

ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय ३ शलोक ५९,६०,६१,६२ में लिखा हैं की गोलोक में कृष्ण की पत्नी राधा ने कृष्ण को पराई औरत के साथ पकर लिया तो शाप देकर कहाँ – हे कृष्ण ब्रज के प्यारे , तू मेरे सामने से चला जा तू मुझे क्यों दुःख देता हैं – हे चंचल , हे अति लम्पट कामचोर मैंने तुझे जान लिया हैं. तू मेरे घर से चला जा. तू मनुष्यों की भांति मैथुन करने में लम्पट हैं, तुझे मनुष्यों की योनी मिले, तू गौलोक से भारत में चला जा. हे सुशीले, हे शाशिकले, हे पद्मावती, हे माधवों! यह कृष्ण धूर्त हैं इसे निकल कर बहार करो, इसका यहाँ कोई काम नहीं.

ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय १५ में राधा का कृष्ण से रमण का अत्यंत अश्लील वर्णन लिखा हैं जिसका सामाजिक मर्यादा का पालन करते हुए में यहाँ विस्तार से वर्णन नहीं कर रहा हूँ.

ब्रह्मवैवर्त पुराण कृष्ण जन्म खंड अध्याय ७२ में कुब्जा का कृष्ण के साथ सम्भोग भी अत्यंत अश्लील रूप में वर्णित हैं .

राधा का कृष्ण के साथ सम्बन्ध भी भ्रामक हैं. राधा कृष्ण के बामांग से पैदा होने के कारण कृष्ण की पुत्री थी अथवा रायण से विवाह होने से कृष्ण की पुत्रवधु थी चूँकि गोलोक में रायण कृष्ण के अंश से पैदा हुआ था इसलिए कृष्ण का पुत्र हुआ जबकि पृथ्वी पर रायण कृष्ण की माता यसोधा का भाई था इसलिए कृष्ण का मामा हुआ जिससे राधा कृष्ण की मामी हुई.

कृष्ण की गोपिओं कौन थी?

पदम् पुराण उत्तर खंड अध्याय २४५ कलकत्ता से प्रकाशित में लिखा हैं की रामचंद्र जी दंडक -अरण्य वन में जब पहुचें तो उनके सुंदर स्वरुप को देखकर वहां के निवासी सारे ऋषि मुनि उनसे भोग करने की इच्छा करने लगे. उन सारे ऋषिओं ने द्वापर के अंत में गोपियों के रूप में जन्म लिया और रामचंद्र जी कृष्ण बने तब उन गोपियों के साथ कृष्ण ने भोग किया. इससे उन गोपियों की मोक्ष हो गई. वर्ना अन्य प्रकार से उनकी संसार

रुपी भवसागर से मुक्ति कभी न होती.
क्या गोपियों की उत्पत्ति का दृष्टान्त बुद्धि से स्वीकार किया जा सकता हैं?

श्री कृष्ण जी महाराज का वास्तविक रूप

अभी तक हम पुराणों में वर्णित गोपियों के दुलारे, राधा के पति, रासलीला रचाने वाले कृष्ण के विषय में पढ़ रहे थे जो निश्चित रूप से असत्य हैं.

अब हम योगिराज, निति निपुण , महान कूटनीतिज्ञ श्री कृष्ण जी महाराज के विषय में उनके सत्य रूप को जानेगे.

आनंदमठ एवं वन्दे मातरम के रचियता बंकिम चन्द्र चटर्जी जिन्होंने ३६ वर्ष तक महाभारत पर अनुसन्धान कर श्री कृष्ण जी महाराज पर उत्तम ग्रन्थ लिखा ने कहाँ हैं की महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण जी की केवल एक ही पत्नी थी जो की रुक्मणी थी, उनकी २ या ३ या १६००० पत्नियाँ होने का सवाल ही पैदा नहीं होता. रुक्मणी से विवाह के पश्चात श्री कृष्ण रुक्मणी के साथ बदरिक आश्रम चले गए और १२ वर्ष तक तप एवं ब्रहमचर्य का पालन करने के पश्चात उनका एक पुत्र हुआ जिसका नाम प्रदुमन था. यह श्री कृष्ण के चरित्र के साथ अन्याय हैं की उनका नाम १६००० गोपियों के साथ जोड़ा जाता हैं. महाभारत के श्री कृष्ण जैसा अलोकिक पुरुष , जिसे कोई पाप नहीं किया और जिस जैसा इस पूरी पृथ्वी पर कभी-कभी जन्म लेता हैं. स्वामी दयानद जी सत्यार्थ प्रकाश में वहीँ कथन लिखते हैं जैसा बंकिम चन्द्र चटर्जी ने कहाँ हैं. पांड्वो द्वारा जब राजसूय यज्ञ किया गया तो श्री कृष्ण जी महाराज को यज्ञ का सर्वप्रथम अर्घ प्रदान करने के लिए सबसे ज्यादा उपर्युक्त समझा गया जबकि वहां पर अनेक ऋषि मुनि , साधू महात्मा आदि उपस्थित थे.वहीँ श्री कृष्ण जी महाराज की श्रेष्ठता समझे की उन्होंने सभी आगंतुक अतिथियो के धुल भरे पैर धोने का कार्य भार लिया. श्री कृष्ण जी महाराज को सबसे बड़ा कूटनितिज्ञ भी इसीलिए कहा जाता हैं क्यूंकि उन्होंने बिना हथियार उठाये न केवल दुष्ट कौरव सेना का नाश कर दिया बल्कि धर्म की राह पर चल रहे पांडवो को विजय भी दिलवाई.

ऐसे महान व्यक्तित्व पर चोर, लम्पट, रणछोर, व्यभिचारी, चरित्रहीन , कुब्जा से समागम करने वाला आदि कहना अन्याय नहीं तो और क्या हैं और इस सभी मिथ्या बातों का श्रेय पुराणों को जाता हैं.

इसलिए महान कृष्ण जी महाराज पर कोई व्यर्थ का आक्षेप न लगाये एवं साधारण जनों को श्री कृष्ण जी महाराज के असली व्यक्तित्व को प्रस्तुत करने के लिए पुराणों का बहिष्कार आवश्यक हैं और वेदों का प्रचार आती आवश्यक हैं.

और फिर भी अगर कोई न माने तो उन पर यह लोकोक्ति लागु होती हैं-

जब उल्लू को दिन में न दिखे तो उसमें सूर्य का क्या दोष हैं?

प्रोफैसर उत्तम चन्द शरर जन्माष्टमि पर सुनाया करते थे

: तुम और हम हम कहते हैं आदर्श था इन्सान था मोहन |

…तुम कहते हो अवतार था, भगवान था मोहन ||

हम कहते हैं कि कृष्ण था पैगम्बरो हादी |

तुम कहते हो कपड़ों के चुराने का था आदि ||

हम कहते हैं जां योग पे शैदाई थी उसकी |

तुम कहते हो कुब्जा से शनासाई थी उसकी ||

हम कहते है सत्यधर्मी था गीता का रचैया |

तुम साफ सुनाते हो कि चोर था कन्हैया ||

हम रास रचाने में खुदायी ही न समझे |

तुम रास रचाने में बुराई ही न समझे ||

इन्साफ से कहना कि वह इन्सान है अच्छा |

या पाप में डूबा हुआ भगवान है अच्छा ||

दलित मसीहा – मास्टर आत्माराम अमृतसरी

डॉ विवेक आर्य



फिल्म आरक्षण आज कल अपने विषय को लेकर कम बल्कि दलित स्वर्ण राजनीती को लेकर अधिक सुर्ख़ियों में हैं. दलित नेता इसे दलितों के अधिकार से खिलवार समझ रहे थे जबकि स्वर्णो की राजनीती करने वाले इसे स्वर्णो के हितों से खिलवार समझ रहे थे. सच्चाई जबकि अलग थी की एक स्वर्ण जाती का प्रिंसिपल प्रभाकर सभी गरीब बच्चों को चाहे वो स्वर्ण हो या दलित हो को पढने के सामान अवसर देकर उन्हें जीवन में आगे बढने का उच्च अवसर देना चाहता था जिससे की वे आगे बढ सके और यही शिक्षा का मूल अभिप्राय हैं.फिल्म खत्म होते होते सभी दर्शको के मन में यह विचार अवश्य आया की काश हमारे समाज में अमिताभ बच्चन द्वारा निभाए गए प्रिंसिपल प्रभाकर के समान नागरिक होते जिनके विचार से मनुष्य में केवल एक ही जाति हैं वो हैं मानव जाति.कोई दलित या स्वर्ण का झगड़ा ही नहीं हैं.

२० वि शताब्दी के आरंभ में हमारे देश में न केवल आज़ादी के लिए संघर्ष हुआ अपितु सामाजिक उद्धार के लिए भी बड़े-बड़े आन्दोलन हुए.इन सभी सामाजिक अन्दोलोनो में एक था शिक्षा का समान अधिकार.

स्वामी दयानंद द्वारा सत्यार्थ प्रकाश में स्पष्ट कहाँ गया की राजा के पुत्र से लेकर एक गरीब व्यक्ति का बालक तक नगर से बाहर गुरुकुल में समान भोजन और अन्य सुविधायों के साथ उचित शिक्षा प्राप्त करे एवं उसका वर्ण उसकी शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात ही निर्धारित हो और जो अपनी संतान को शिक्षा के लिए न भेजे उसे राजदंड दिया जाये. इस प्रकार एक शुद्र से लेकर एक ब्राह्मन तक के बालक को समान परिस्थियों में उचित शिक्षा दिलवाना और उसे समाज का एक जिम्मेदार नागरिक बनाना शिक्षा का मूल उद्देश्य था.

स्वामी दयानंद के क्रांतिकारी विचारों से प्रेरणा पाकर बरोदा नरेश शयाजी राव गायकवाड ने अपने राज्य में दलितों के उद्धार का निश्चय किया. आर्यसमाज के स्वामी नित्यानंद जब बरोदा में प्रचार करने के लिए पधारे तो महाराज ने अपनी इच्छा स्वामी जो को बताई की मुझे किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता हैं जो इस कार्य को कर सके. पंडित गुरुदत विद्यार्थी जो स्वामी दयानंद के निधन के पश्चात नास्तिक से आस्तिक बन गए थे से प्रेरणा पाकर नये नये B.A.बने आत्माराम अमृतसरी ने अंग्रेजी सरकार की नौकरी न करके स्वतंत्र रूप से कार्य करने का निश्चय किया.स्वामी नित्यानंद के निर्देश पर अध्यापक की नौकरी छोड़ कर उन्होंने बरोदा जाकर दलित विद्यार्थियों को शिक्षा देने का निश्चय किया. एक पक्की सरकारी नौकरी को छोड़कर गुजरात के गाँव गाँव में दलितों के उद्धार के लिए धुल खाने का निर्णय स्वामी दयानंद के भक्त ही ले सकते हैं और कोई नहीं.

आत्माराम जी बरोदा नरेश से मिले तो उनको दलित पाठशालाओं को खोलने विचार महाराज ने बताया और उन्हें इन पाठशालाओं का अधीक्षक बना दिया गया. मास्टर जी स्थान तलाशने निकल पड़े. जैसे ही मास्टर आत्माराम जी किसी भी स्थान को पसंद करते तो दलित पाठशाला का नाम सुनकर कोई भी किराये के लिए उसे नहीं देता. अंत में मास्टर जी को एक भूत बंगला मिला उस स्थान पर पाठशाला स्थापित कर दी गयी. गायकवाड महाराज ने कुछ समय के बाद अपने अधिकारी श्री शिंदे को भेजकर पाठशाला का हाल चाल पता कराया. शिंदे जी ने आकार कहाँ महाराज ऐसा दृश्य देख कर आ रहा हु जिसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता. दलित में भी अति निम्न समझने वाली जाति के लड़के वेद मंत्रो से ईश्वर की स्तुति कर रहे थे और दलित लड़कियां भोजन पका रही थी जिसे सभी ग्रहण करते थे. सुनकर महाराज को संतोष हुआ. पर यह कार्य ऐसे ही नहीं हो गया. मास्टर जी स्वयं अपने परिवार के साथ किराये पर रहते थे, जैसे ही मकान मालिक को पता चलता की वे दलितों के उत्थान में लगे हुए हैं वे उन्हें खरी खोटी सुनाते और मकान खाली करा लेते. इस प्रकार मास्टर जी अत्यंत कष्ट सहने रहे पर अपने मिशन को नहीं छोड़ा. महाराज के प्रेरणा से मास्टर जी ने बरोदा राज्य में ४०० के करीब पाठशालाओं की स्थापना कारी जिसमे २०,००० के करीब दलित बच्चे शिक्षा ग्रहण करते थे. महाराज ने प्रसन होकर मास्टर जी के सम्पूर्ण राज्य की शिक्षा व्यस्था का इंस्पेक्टर बना दिया. मास्टर जी जब भी स्कूलों के दौरों पर जाते तो स्वर्ण जाति के लोग उनका तिरस्कार करने में कोई कसर नहीं छोड़ते पर मास्टर जी चुप चाप अपने कार्य में लगे रहे. सम्पुर्ण गुजरात में मास्टर आत्माराम जी ने न जाने कितने दलितों के जीवन का उद्धार किया होगा इसका वर्णन करना मुश्किल हैं.अपने बम्बई प्रवास के दौरान मास्टर जी को दलित महार जाति का B.A. पड़ा हुआ युवक मिला जो एक पेड़ के नीचे अपने पिता की असमय मृत्यु से परेशान बैठा था. उसे पढने के लियें २५ रूपए मासिक की छात्रवृति गायकवाड महाराज से मिली थी जिससे वो B .A . कर सका था. मास्टर जी उसकी क़ाबलियत को समझकर उसे अपने साथ ले आये. कुछ समय पश्चात उसने मास्टर जी को अपनी आगे पढने की इच्छा बताई. मास्टर जी ने उन्हें गायकवाड महाराज के बम्बई प्रवास के दौरान मिलने का आश्वासन दिया. महाराज ने १० मेघावी दलित छात्रों को विदेश जाकर पढने के लियें छात्रवृति देने की घोषणा करी थी.उस दलित युवक को छात्रवृति प्रदान करी गयी जिससे वे अमरीका जाकर आगे की पढाई पूरी कर सके. अमरीका से आकर उन्हें बरोदा राज्य की १० वर्ष तक सेवा करने का कार्य करना था इसलिए उन्होंने नौकरी आरंभ कर दी. पर स्वर्णो द्वारा ऑफिस में अलग से पानी रखने, फाइल को दूर से पटक कर टेबल पर डालने से उनका मन खट्टा हो गया. वे आत्माराम जी से इस नौकरी से मुक्त करवाने के लियें मिले. आत्माराम जी के कहने पर गायकवाड महाराज ने उन्हें १० वर्ष के अनुबंध से मुक्त कर दिया. इस बीच आत्माराम जी के कार्य को सुन कर कोहलापुर नरेश साहू जी महाराज ने उन्हें कोहलापुर बुलाकर सम्मानित किया और आर्यसमाज को कोल्हापुर का कॉलेज चलने के लिए प्रदान कर दिया. आत्माराम जी का कोहलापुर नरेश से आत्मीय सम्बन्ध स्थापित हो गया.

आत्माराम जी के अनुरोध पर उन दलित युवक को कोहलापुर नरेश ने इंग्लैंड जाकर आगे की पढाई करने के लिए छात्रवृति दी जिससे वे phd करके देश वापिस लौटे.उन दलित युवक को अब लोग डॉ अम्बेडकर के नाम से जानते लगे. जो कालांतर में दलित समाज के सबसे लोक प्रिय नेता बने और जिन्होंने दलितों के लिए संघर्ष किया. मौजदा दलित नेता डॉ अम्बेडकर से लेकर पंडिता रमाबाई तक (जिन्होंने पूने में १५००० के करीब विधवाओं को ईसाई मत में सम्मिलित करवा दिया था) उनसे लेकर ज्योतिबा फुले तक (जिन्होंने सत्य शोधक समाज की स्थापना करी और दलितों की शिक्षा के लिए विद्यालय खोले) का तो नाम बड़े सम्मान से लेते हैं पर स्वर्ण जाति में जन्मे और जीवन भर दलितों का जमीनी स्तर पर शिक्षा के माध्यम से उद्धार करने वाले मास्टर आत्माराम जी अमृतसरी का नाम लेना अपराध समझते हैं.सोचिये अगर मास्टर जी के प्रयास से और स्वामी दयानंद की सभी को शिक्षा देने की जन जागृति न होती तो डॉ अम्बेडकर महार जाति के और दलित युवकों की तरह एक साधारण से व्यक्ति ही रह जाते.और फिर दलित नेता अपनी राजनैतिक रोटियां किस मंच पर पकाते. आज समाज को आरक्षण से ज्यादा सभी को समान अवसर की जरुरत हैं जिससे देश और जाति का कल्याण हो सके.दलित उत्थान ५००० करोड़ रुपये के थीम पार्क बनाने से नहीं अपितु जो दलित अनपढ़ हैं उन्हें शिक्षा देने से, जो बेरोजगार हैं उन्हें नौकरी देने से, जो बीमार हैं उन्हें चिकित्सा सुविधा देने से होगा.

CONTRIBUTIONS OF SWAMI DAYANAND TO HINDU SOCIETY

1. Swami Dayanand, Yug Pravartak / Yug Drashta, Founder of Arya Samaj, rebuilt the entire Indian nation & HINDU Society in a NEW Mould where every Hindu & Arya had to believe firmly that this country ” BHARAT” is their own land & No person of FOREIGN BIRTH could ever become HEAD of its affairs in any way.

2. He believed & proved that in our Vedas there was NO SUCH thing as UNTOUCHABILITY . He & through his Arya Samaj succeeded in launching a Great movement against UNTOUCHABILITY which was followed up & taken up by Gandhiji & Congress in a BIG way during our Freedom struggle & post -independence.

3. Child Marriages : In Maharishi Dayanand’s days, the child marriages were a very common factor. Maharishi Dayanand & his Arya Samaj propagated against this curse from our Hindu Society. Even now , it is prevalent in certain regions & amongst backward Hindus.

4. Maharishi Dayanand & its Arya Samaj launched yet another related curse of Hindu Society , namely, marrying more than one wife or POLYGAMY: Arya Samaj through “Magic Lantern ” Arya Pracharaks who travelled widely deep into the villages & towns successfully removed this evil from our Hindu society. (Subsequently, it was lawfully abolished under Hindu Code bill ).Still there are examples of this curse of POLYGAMY amongst our Hindus, which is spreading like a menace which requires to be controlled at all levels, specially our Politicians & Affluent class require some Ved Prachar for it.

5.AryaSamaj successfully fought with the orthodox Brahmin Community & established that there was No example in the Vedas to worship the idol as God is OMNIPOTENT , OMNI_PRESENT & FORMLESS, once it is omnipresent, it cannot be confined under lock & key any where NOR evn in their so called Temples which have become Nothing more that “Religious shops ” for the pandits.

6. Dayanand preached & pleaded with the Orthodox Hindu Community to return to Vedas in true sense & to follow its dictates. He organized to obtain the Original Vedas from Germany & translated them in simple Sanskrit & Hindi along with his famous Book , ” RIGVED BHASHYA” , “SOLAH SANSKARS”etc.

7. Swami Dayanand propagated that all people are born equal & No one is Brahmin, Vaishya, Shatriya or Shudra by birth , but these are according to the profession one chooses and each of these sects are complimentary to each other & None is superior or inferior to the other.

8.Dayanand infused a thought amongst our Hindu Society that the West has NOT contributed anything towards the emancipation of our Country’s welfare, rather the West owe to us for everything, every progress which they unjustifiably claim of theirs, including the invention of “ZERO”.

9. Dayanand strongly believed in a National Religion , based on INTENSE DEDICATED , TRUE , SELFLESS, FEARLESS NATIONALISM, a thought which he propagated amongst all the Hindus of India, preparing for Self-Rule & Freedom, based on equality ; its details are enshrined in ” SATYARTH PRAKSH” by Maharishi Dayanand Saraswati. This was his life’s greatest mission

10. Brought about widows re-marriages amongst the Hindus.

11. Pleaded & Stopped the most barbaric & most orthodox “Sati- Pratha” amongst the Hindus of our country.

12. Dayanand & Its Arya Samaj hit hard on the Blind faiths of Hindu Society & awakened them of these fake/ false Blind faiths which were spread amongst Hindu Society falsely by various orthodox Hindu organizations.

13. Shuddhi Prachaar of Dayanand Saraswati & Arya Samaj was & still the Greatest contribution to Hindu Society , thereby bringing back our brothers & sisters whom we had lost to other religions owing to our orthodox beliefs.

14. Spread of education to all irrespective of one being a boy or girl, of being a Brahmin or of other so called castes. Dayanand & its Arya Samaj played its greatest role in starting women’s Education every where in India & to every one irrespective of Caste,Creed, Sex etc.

15. In the field of Education again Maharishi Dayanand played its greatest role in strengthening Hindu Society.

16. Dayanand’s Arya Samaj opened its First Orphanage in Firozepore , followed by a chain of Orphanages all over the country so that our orphans may not adopt other religions like Islam or Christianity.

17. In the same way, Dayanand’s Arya Samaj opened Homes for the widows & Destitude womens to accommodate , train them in some useful profession & to get them married to suitable partners in course.

18. Dayanand / Arya Samaj succeeded in removing the Pardha System from our Hindu Society and Brought Hindu women at par with men-folk.

19.Dayanand launched a movement successfully that studying of Sanskrit , Vedas & Upnishidas is NOT restricted to Brahamins alone but every caste had equal Rights to study these including women-folk .

20. Dayanand & its Arya Samaj gave Rights to wear Yagopaveet to every Hindu irrespective of one’s birth.

21. In those days, any Hindu Travellers overseas, had to undergo penance & give away a lot of gifts to Orthodox Brahmins for allowing them to re-admit to Hindu Dharma, but Dayanand got rid of such ills from Orthodox Hindu Society.

22. Maharishi Dayanand Saraswati, first time, told the Hindu Society the difference of the meaning of good Governance & “own Independent Rule ” & instigated people to demand self /own independent rule & to throw away the foreign yoke of slavery of the Britrishers. Maharishi Dayanand was the First Indian who announced for the FIRST Time that Bharatvarsh is only of Bharatvasies & we should have our own Self Independent Rule.

23. Maharishi Dayanand & its Arya Samaj emphasized on Swadeshi & patronising of Swadeshi Products only amongst all the Hindu Community .

24 . If HINDI remained the main stay of our freedom struggle, it was because of Maharishi Dayanand , even today, Dayanand’s Arya Samaj can take this credit for the Promotion of Hindi as a National language all over the country .

25. Dayanand & its Arya Samaj gave to Hindu Orthodox Society , great thinkers, National Leaders & Revolutionaries like : Lala Lajpat Rai, Lokmanya Bal Gangadhar Tilak, Bipin Chandra Pal, Shri Arvind Ghosh, Bhai Parmanand, Bhai Shyamji Krishna Verma, Bhagat Singh, Ram Prasad Bismil, Bhai Bal Mukund, Madanlal Dhingra,Madan Mohan Malviye, Swami Shraddhanand & Pandit Lekhram & others as well as Most of the revolutionaries, who defacto brought about our Independence .

26. Dayanand & Arya Samaj always believe that begging is a worst thing , it is never liked by any one , rather it demoralizes the beggar, hence Dayanand insisted the Hindu Society as a whole to stand on its own feet , on its own good deeds & to come forward to sacrifice one’s life for the Nation .

27. Hindu Women have to pay back to Swami Dayanand Saraswati the Greatest , if he had NOT come forward to improve their Social Rights, rights to educate themselves, right to read Vedas , Upnishads, Remarriages , equal rights as per men’s , abolition of Dowry system, equal opportunity to select their partners etc.the Indian womens could never have attained their emancipation & would have remained as backword as Muslim women of the world.

And Many- many more Contributions of Arya Samaj to the HINDU Society

नारी जाति की वेदों में महिमा



स्वामी दयानंद की वेद भाष्य को देन- भाग ५

स्वामी दयानंद के काल में भारत देश में नारी जाति की अवस्था अत्यंत दयनीय थी. एक तरफ तो १००० वर्षो से मुस्लिम अक्रांताओ द्वारा नारी जाति का जो सम्मान बलात्कार,अपहरण,हरम, हत्या, पर्दा, सौतन, जबरन धरमांतरण आदि के रूप में किया गया था वह अत्यंत शोचनीय था. दूसरी तरफ हिन्दू समाज भी समय के साथ कुछ कुरीतिया ग्रहण कर चूका था जैसे सती प्रथा,बाल विवाह,देवदासी प्रथा, अशिक्षा, समाज में नारी का नीचा स्थान, विधवा का अभिशाप,नवजात कन्या की हत्या आदि.समाज में नारी के विषय में यह प्रचलित कर दिया गया था की जो नारी वेद मंत्र को सुन ले तो उसके कानों में गर्म सीसा डाल देना चाहिए और जो बोल दे तो उसकी जिव्हा को अलग कर देना चाहिए. कोई उसे पैर की जूती कहने में अपना बड़प्पन समझता था तो कोई उसे ताड़न की अधिकारी समझता था.

धार्मिक ग्रंथो का अनुशीलन करते हुए स्वामी दयानंद ने पाया की धर्म के नाम पर नारी जाति को समाज में जिस प्रकार से तिरस्कृत किया जा रहा था सत्य उसके बिलकुल विपरीत था.

वेद हिन्दू समाज ही नहीं अपितु समस्त विश्व समाज के लिए अनुसरण करने योग्य ईश्वरीय ज्ञान हैं.नारी जाति का जितना उच्च स्थान वेदों में ऋषि दयानंद ने पाया उसका अंश भर भी विश्व के किसी भी मत की पुस्तक में देखने को नहीं मिलता.

स्वामी दयानंद द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश में नारी जाति के उत्थान का उद्घोष

जन्म से पांचवे वर्ष तक के बालकों को माता तथा छ: से आठवें वर्ष तक पिता शिक्षा करे और ९ वें के प्रारंभ में द्विज अपने संतानों का उपनयन करके जहाँ पूर्ण विद्वान तथा पूर्ण विदुषी स्त्री , शिक्षा और विद्या-दान करने वालो हो वहां लड़के तथा लडकियों को भेज दे. (द्वितीय सम्मुलास)

ऋषि दयानंद लड़कियों को लड़कों के बराबर की शिक्षा के लिए सन्देश दे रहे हैं.

लड़कों को लड़कों की तथा लड़कियों को लकड़ियों की शाला में भेज देवें, लड़के तथा लड़कियों की पाठशालाएँ एक दुसरे से कम से कम दो कोस की दुरी पर हो. (तृतीय सम्मुलास)

सह शिक्षा के कारण चरित्र का हनन होता हैं इसका प्रमाण हमे रोजमर्रा में देखने को मिलता हैं.स्वामी दयानंद की दूरगामी सोच का अगर पालन होता तो जाने कितनो के चरित्र की रक्षा हो जाती.

जो वहां अध्यापिका और अध्यापक अथवा भृत्य, अनुचर हों, वे कन्यायों की पाठशाला में सब स्त्री तथा पुरुषों की पाठशाला में सब पुरुष रहें. स्त्रियों की पाठशाला में पांच वर्ष का लड़का और पुरुषों की पाठशाला में पांच वर्ष की लड़की भी न जाने पाए. (सत्यार्थ प्रकाश- तृतीय सम्मुलास)

जब तक वे ब्रहाम्चारिणी रहे, तब तक पुरुष का दर्शन, स्पर्शन, एकांत सेवन, भाषण, विषय-कथा, परस्पर क्रीरा, विषय का ध्यान और संग इन आठ प्रकार के मैथुनों से अलग रहे. (सत्यार्थ प्रकाश- तृतीय सम्मुलास)

भाव स्पष्ट हैं माता और पिता का चरित्र अगर उज्जवल होगा तो संतान की उत्पत्ति भी सुयोग्य एवं चरित्रवान होगी.

इसमें राजनियम और जाती नियम होना चाहिए कि पांचवे अथवा आठवें वर्ष से आगे अपने लड़के और लड़कियों को घर में न रख सकें, पाठशाला में अवश्य भेज देवें. जो न भेजे वह दंडनीय हो. (सत्यार्थ प्रकाश- तृतीय सम्मुलास)

स्वामी दयानंद नारी शिक्षा के महत्व को यथार्थ में समझते थे क्यूंकि माता ही शिशु की प्रथम गुरु होती हैं इसलिए उसका शिक्षित होना अत्यंत महत्व पूर्ण होता हैं.

सती प्रथा वेद विरुद्ध हैं और विधवा का पुनर्विवाह वेद संगत हैं.

1875 में स्वामी दयानंद ने पूना में दिए गए अपने प्रवचन में स्पष्ट घोषणा की थी की “सती होने के लिए वेद की आज्ञा नहीं हैं”

सायण ने अथर्ववेद १९.३.१ के मंत्र में सती प्रथा दर्शाने का प्रयास किया हैं – यह नारी अनादीशिष्टाचारसिद्ध, स्मृति पुराण आदि में प्रसिद्द सहमरणरूप धर्म का परीपालन करती हुई पतिलोक को अर्थात जिस लोक में पति गया हैं उस स्वर्गलोक को वरण करना चाहती हुई तुझ मृत के पास सहमरण के लिए पहुँच रही हैं. अगले जन्म में तू इसे पुत्र- पौत्रादि प्रजा और धन प्रदान करना. सायण कहते हैं अगले जन्म में भी उसे वही पति मिलेगा.इसलिए ऐसा कहा गया हैं.

इस मंत्र का सही अर्थ इस प्रकार हैं – यह नारी पुरातन धर्म का पालन करती हुई पतिगृह को पसंद करती हुई हे मरण धर्मा मनुष्य , तुझ मृत के समीप नीचे भूमि पर बैठी हुई हैं. उसे संतान और सम्पति यहाँ सौप.

अर्थात पति की मृत्यु होने के बाद पत्नी का सम्पति और संतान पर अधिकार हैं.

हमारे कथन की पुष्टि अगले ही मंत्र १९.३.२ में स्वयं सायण करते हुए कहते हैं “हे मृत पति की धर्मपत्नी ! तू मृत के पास से उठकर जीवलोक में आ, तू इस निष्प्राण पति के पास क्यों परी हुई हैं? पाणीग्रहणकर्ता पति से तू संतान पा चुकी हैं, उसका पालन पोषण कर.’

मध्यकाल के बंगाल के कुछ पंडितो ने ऋग्वेद १०.१८.७ अग्रे के स्थान पर अग्ने पढकर सती प्रथा को वैदिक सिद्ध करना चाहा था, परन्तु यह केवल मात्र चल था इस मंत्र में वधु को अग्नि नहीं अपितु गृह प्रवेश के समय आगे चलने को कहा गया था.

विधवा के दोबारा विवाह के पक्ष में अथर्ववेद के मंत्र १८.३ में कहाँ गया हैं की मैंने विधवा युवती को जीवित मृतो के बीच से अर्थात शमशान भूमि से ले जाई जाती हुई तथा पुनर्विवाह के लिए जाती हुई देखा हैं. क्यूंकि यह पति विरह जन्य दुःख रूप घोर अंधकार से प्रवित थी इस कारण इसे पूर्व पत्नीत्व से हटाकर दूसरा पत्नीत्व मैंने प्राप्त करा दिया हैं.

अथर्ववेद ९/५/२७-२८ में कहाँ गया हैं की जो स्त्री पहले पति को प्राप्त करके पुन: उससे भिन्न पति को प्राप्त करती हैं, पुन: पत्नी होनेवाली स्त्री के साथ यह दूसरा पति एक ही गृहस्थलोक में वास करने वाला हो जाता हैं.

देवर से पुनर्विवाह के प्रमाण ऋग्वेद १०/४०/२ और निरुक्त ३/१४ में भी मिलते हैं.

इस प्रकार यह सिद्ध होता हैं की वेदों में सटी प्रथा जैसा महापाप नहीं अपितु पुनर्विवाह की अनुमति हैं.

वेदों में पुत्रियों की कामना की गयी हैं
समाज में आज कन्या भ्रूण हत्या का महापाप प्रचलित हो गया हैं जिसका मुख्य कारण नारी जाति का समाज में उचित सम्मान न होना, दहेज जैसे कुरीतियों का होना ,समाज में बलात्कार जैसी घटनाओं का बढ़ना ,चरित्र दोष आदि जिससे नारी जाति की रक्षा कर पाना कठिन हो जाना आदि मुख्य कारण हैं. कुछ का तर्क देना हैं की वेद नारी को हीन दृष्टी से देखता हैं और वेदों में सर्वत्र पुत्र ही मांगे गए हैं, पुत्रियों की कामना नहीं की गयी हैं. वेदों के प्रमाण जिनमे नारी की यश गाथा का वर्णन हैं.

ऋग्वेद १०.१५९.३ – मेरे पुत्र शत्रु हन्ता हों और पुत्री भी तेजस्वनी हो .

ऋग्वेद ८/३१/८ यज्ञ करने वाले पति-पत्नी और कुमारियोंवाले होते हैं.

ऋग्वेद ९/६७/१० प्रति प्रहर हमारी रक्षा करने वाला पूषा परमेश्वर हमें कन्यायों का भागी बनायें अर्थात कन्या प्रदान करे.

यजुर्वेद २२/२२ – हमारे राष्ट्र में विजयशील सभ्य वीर युवक पैदा हो , वहां साथ ही बुद्धिमती नारियों के उत्पन्न होने की भी प्रार्थना हैं.

अथर्ववेद १०/३/२०- जैसा यश कन्या में होता हैं वैसा यश मुझे प्राप्त हो.

वेदों में पत्नी को उषा के सामान प्रकाशवती, वीरांगना, वीर प्रसवा, विद्या अलंकृता, स्नेहमयी माँ, पतिव्रता, अन्नपूर्णा, सदगृहणी, सम्राज्ञी आदि से संबोधित किया गया हैं जो निश्चित रूप से नारी जाति को उचित सम्मान प्रदान करते हैं.

दहेज का सही अर्थ न समझकर आज धन के लोभ में हजारों नारियों को निर्दयता से आग में जला कर भस्म कर दिया जाता हैं. इसका मुख्य कारण दहेज शब्द के सही अर्थ को न जानना हैं. वेदों में दहेज शब्द का सही अर्थ हैं पिता ज्ञान, विद्या, उत्तम संस्कार आदि गुणों के साथ वधु को वर को भेंट करे.

आज समाज अगर नारी की महता जैसी वेदों में कही गयी हैं उसको समझे तो निश्चित रूप से सभी का कल्याण होगा.

नारी जाति को यज्ञ का अधिकार

वैदिक काल में नारी जाति को यज्ञ में भाग लेने का अधिकार था जिसे मध्य काल में वर्जित कर दिया गया. नारी का स्थान यज्ञवेदी से बाहर हैं (शतपथ ब्रह्मण २७/४) अथवा कन्या और युवती अग्निहोत्र की होता नहीं बन सकती (मनु ११/३६)

वेद नारी जाति को यज्ञ में भाग लेने का पूर्ण अधिकार देते हैं .

ऋग्वेद ८/३१/५-८ में कहा गया हैं की जो पति-पत्नी समान मनवाले होकर यज्ञ करते हैं उन्हें अन्न, पुष्प, हिरण्य आदि की कमी नहीं रहती.

ऋग्वेद १०/८५/४७ – विवाह यज्ञ में वर वधु उच्चारण करते हुए एक दुसरे का ह्रदय-स्पर्श करते हैं.

ऋग्वेद १/७२/५ – विद्वान लोग पत्नी सहित यज्ञ में बैठते हैं और नमस्करणीय को नमस्कार करते हैं.

इस प्रकार यजुर्वेद में ३/४४, ३/४५,३/४७,३/६०,११/५,१५/५०, अथर्ववेद ३/२८/६ , ३/३०/६, १४/२/१८, १४/२/२३, १४/२/२४ में भी यज्ञ में नारी के भाग लेने के स्पष्ट प्रमाण हैं.

ऋग्वेद ८/३३/१९ में स्त्री हि ब्रह्मा बभूबिथ अर्थात स्त्री यज्ञ की ब्रह्मा बनें कहा गया हैं.

नारी जाति को शिक्षा का अधिकार

स्वामी दयानंद ने “स्त्रीशूद्रो नाधियातामिति श्रुते:” – स्त्री और शूद्र न पढे यह श्रुति हैं को नकारते हुए वैदिक काल की गार्गी, सुलभा, मैत्रयी, कात्यायनी आदि सुशिक्षित स्त्रियों का वर्णन किया जो ऋषि- मुनिओं की शंकाओं का समाधान करती थी.

ऋग्वेद ६/४४/१८ का भाष्य करते हुए स्वामी दयानंद लिखते हैं राजा ऐसा यत्न करे जिससे सब बालक और कन्यायें ब्रहमचर्य से विद्यायुक्त होकर समृधि को प्राप्त हो सत्य, न्याय और धर्म का निरंतर सेवन करे.

यजुर्वेद १०/७- राजा को प्रयत्नपूर्वक अपने राज्य में सब स्त्रियों को विदुषी बनाना चाहिए.

ऋग्वेद ३/१/२३- विद्वानों को यही योग्यता हैं की सब कुमार और कुमारियों को पुन्दित बनावे, जिससे सब विद्या के फल को प्राप्त होकर सुमति हों.

ऋग्वेद २/४१/१६- जितनी कुमारी हैं वे विदुषियों से विद्या अध्ययन करे और वे कुमारी ब्रह्मचारिणी उन विदुषियों से ऐसी प्रार्थना करें की आप हम सबको विद्या और सुशिक्षा से युक्त करें.

इस प्रकार यजुर्वेद ११/३६ , ६/१४ ,११/५९ एवं ऋग्वेद १/१५२/६ में भी नारी को शिक्षा का अधिकार दिया गया हैं.

वेदों में बहु-विवाह आदि विषयक भ्रान्ति का निवारण

वेदों के विषय में एक भ्रम यह भी फैलाया गया हैं की वेदों में बहुविवाह की अनुमति दी गयी हैं (vedic age pge 390).

ऋग्वेद १०/८५ को विवाह सूक्त के नाम से जाना चाहता हैं. इस सूक्त के मंत्र ४२ में कहा गया हैं तुम दोनों इस संसार व गृहस्थ आश्रम में सुख पूर्वक निवास करो. तुम्हारा कभी परस्पर वियोग न हो. सदा प्रसन्नतापूर्वक अपने घर में रहो.

ऋग्वेद १०/८५/४७ मंत्र में हम दोनों (वर-वधु) सब विद्वानों के सम्मुख घोषणा करते हैं की हम दोनों के ह्रदय जल के समान शांत और परस्पर मिले हुए रहेंगे.

अथर्ववेद ७/३५/४ में पति पत्नी के मुख से कहलाया गया हैं की तुम मुझे अपने ह्रदय में बैठा लो , हम दोनों का मन एक ही हो जाये.

अथर्ववेद ७/३८/४ पत्नी कहती हैं तुम केवल मेरे बनकर रहो. अन्य स्त्रियों का कभी कीर्तन व व्यर्थ प्रशंसा आदि भी न करो.

ऋग्वेद १०/१०१/११ में बहु विवाह की निंदा करते हुए वेद कहते हैं जिस प्रकार रथ का घोड़ा दोनों धुराओं के मध्य में दबा हुआ चलता हैं वैसे ही एक समय में दो स्त्रियाँ करनेवाला पति दबा हुआ होता हैं अर्थात परतंत्र हो जाता हैं.इसलिए एक समय दो व अधिक पत्नियाँ करना उचित नहीं हैं.

इस प्रकार वेदों में बहुविवाह के विरुद्ध स्पष्ट उपदेश हैं.

वेद बाल विवाह के विरूद्ध हैं

हमारे देश पर विशेषकर मुस्लिम आक्रमण के पश्चात बाल विवाह की कुरीति को समाज ने अपना लिया जिससे न केवल ब्रहमचर्य आश्रम लुप्त हो गया बल्कि शरीर की सही ढंग से विकास न होने के कारण एवं छोटी उम्र में माता पिता बन जाने से संतान भी कमजोर पैदा होती गयी जिससे हिन्दू समाज दुर्बल से दुर्बल होता गया.

अथर्ववेद के ब्रहमचर्य सूक्त ११.५ के १८ वें मंत्र में कहा गया हैं की ब्रहमचर्य (सादगी, संयम और तपस्या) का जीवन बिता कर कन्या युवा पति को प्राप्त करती हैं.

युवा पति से ही विवाह करने का प्रावधान बताया गया हैं जिससे बाल विवाह करने की मनाही स्पष्ट सिद्ध होती हैं.

ऋग्वेद १०/१८३ में वर वधु मिलकर संतान उत्पन्न करने की बात कह रहे हैं. वधु वर से मिलकर कह रही हैं की तो पुत्र काम हैं अर्थात तू पुत्र चाहता हैं वर वधु से कहता हैं की तू पुत्र कामा हैं अर्थात तू पुत्र चाहती हैं. अत: हम दोनों मिलकर उत्तम संतान उत्पन्न करे.पुत्र उत्पन्न करने की कामना युवा पुरुष और युवती नारी में ही उत्पन्न हो सकती हैं. छोटे छोटे बालक और बालिकाओं में नहीं.

इसी भांति अथर्ववेद २/३०/५ में भी परस्पर युवक और युवती एक दुसरे को प्राप्त करके कह रहे हैं की मैं पतिकामा अर्थात पति की कामना वाली और यह तू जनीकाम अर्थात पत्नी की कामना वाला दोनों मिल गए हैं.युवा अवस्था में ही पति-पत्नी की कामना की इच्छा हो सकती हैं छोटे छोटे बालक और बालिकाओं में नहीं.

वेदों में नारी की महिमा

संसार की किसी भी धर्म पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुण गान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं.कुछ उद्हारण देकर हम अपने कथन को सिद्ध करेगे.

१. उषा के समान प्रकाशवती-

ऋग्वेद ४/१४/३

हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम्, सुंदरम की अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ , अपने विस्मयकारी सद्गुणगणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो. जन-जन को सुख देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ.

२. वीरांगना-

यजुर्वेद ५/१०

हे नारी! तू स्वयं को पहचान. तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर. हे नारी ! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर! हे नारी ! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं, धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर.

३. वीर प्रसवा

ऋग्वेद १०/४७/३

राष्ट्र को नारी कैसी संतान दे

हमारे राष्ट्र को ऐसी अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करनेवाली हो, विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो, प्रशंशनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो.

४. विद्या अलंकृता

यजुर्वेद २०/८४

विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे. वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे. अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम -यज्ञ एवं ज्ञान- यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे.

५. स्नेहमयी माँ

अथर्वेद ७/६८/२

हे प्रेमरसमयी माँ! तुम हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो. हम तुम्हारी कृपा- दृष्टि से कभी वंचित न हो.

६. अन्नपूर्ण

अथर्ववेद ३/२८/४

इस गृह आश्रम में पुष्टि प्राप्त हो, इस गृह आश्रम में रस प्राप्त हो. इस गिरः आश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों पोषक पदार्थों का दान कर. हे यम- नियमों का पालन करने वाली गृहणी! जिन गाय आदि पशु से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर.

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:

जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियो कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं.

कब्र पूजा – मुर्खता अथवा अंधविश्वास



कब्र पूजा – मुर्खता अथवा अंधविश्वास
रोजाना के अखबारों में एक खबर आम हो गयी हैं की अजमेर स्थित ख्वाजा मुईन-उद-दीन चिश्ती अर्थात गरीब नवाज़ की मजार पर बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता अभिनेत्रियो अथवा क्रिकेट के खिलाड़ियो अथवा राज नेताओ का चादर चदाकर अपनी फिल्म को सुपर हिट करने की अथवा आने वाले मैच में जीत की अथवा आने वाले चुनावो में जीत की दुआ मांगना. भारत की नामी गिरामी हस्तियों के दुआ मांगने से साधारण जनमानस में एक भेड़चाल सी आरंभ हो गयी हैं की उनके घर पर दुआ मांगे से बरकत हो जाएगी , किसी की नौकरी लग जाएगी , किसी के यहाँ पर लड़का पैदा हो जायेगा , किसी का कारोबार नहीं चल रहा हो तो वह चल जायेगा, किसी का विवाह नहीं हो रहा हो तो वह हो जायेगा .कुछ सवाल हमे अपने दिमाग पर जोर डालने को मजबूर कर रहे हैं जैसे की यह गरीब नवाज़ कौन थे ?कहाँ से आये थे? इन्होने हिंदुस्तान में क्या किया और इनकी कब्र पर चादर चदाने से हमे सफलता कैसे प्राप्त होती हैं? गरीब नवाज़ भारत में लूटपाट करने वाले , हिन्दू मंदिरों का विध्वंश करने वाले ,भारत के अंतिम हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान को हराने वाले व जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करने वाले मुहम्मद गौरी के साथ भारत में शांति का पैगाम लेकर आये थे.पहले वे दिल्ली के पास आकर रुके फिर अजमेर जाते हुए उन्होंने करीब ७०० हिन्दुओ को इस्लाम में दीक्षित किया और अजमेर में वे जिस स्थान पर रुके उस
स्थान पर तत्कालीन हिन्दू राजा पृथ्वी राज चौहान का राज्य था. ख्वाजा के बारे में
चमत्कारों की अनेको कहानियां प्रसिद्ध हैं की जब राजा पृथ्वी राज के सैनिको ने
ख्वाजा के वहां पर रुकने का विरोध किया क्योंकि वह स्थान राज्य सेना के ऊँटो को
रखने का था तो पहले तो ख्वाजा ने मना कर दिया फिर क्रोधित होकर शाप दे दिया की जाओ तुम्हारा कोई भी ऊंट वापिस उठ नहीं सकेगा. जब राजा के कर्मचारियों नें देखा की वास्तव में ऊंट उठ नहीं पा रहे हैं तो वे ख्वाजा से माफ़ी मांगने आये और फिर कहीं जाकर ख्वाजा ने ऊँटो को दुरुस्त कर दिया. दूसरी कहानी अजमेर स्थित आनासागर झील की हैं. ख्वाजा अपने खादिमो के साथ वहां पहुंचे और उन्होंने एक गाय को मारकर उसका कबाब बनाकर खाया.कुछ खादिम पनसिला झील पर चले गए कुछ आनासागर झील पर ही रह गए .

उस समय दोनों झीलों के किनारे करीब १००० हिन्दू मंदिर थे, हिन्दू ब्राह्मणों ने मुसलमानों के वहां पर आने का विरोध किया और ख्वाजा से शिकायत करी.
ख्वाजा ने तब एक खादिम को सुराही भरकर पानी लाने को बोला. जैसे ही सुराही को पानी में डाला तभी दोनों झीलों का सारा पानी सुख गया. ख्वाजा फिर झील के पास गए और वहां स्थित मूर्ति को सजीव कर उससे कलमा पढवाया और उसका नाम सादी रख दिया.ख्वाजा के इस चमत्कार की सारे नगर में चर्चा फैल गयी. पृथ्वीराज चौहान ने अपने प्रधान मंत्री जयपाल को ख्वाजा को काबू करने के लिए भेजा. मंत्री जयपाल ने अपनी सारी कोशिश कर डाली पर असफल रहा और ख्वाजा नें उसकी सारी शक्तिओ को खत्म कर दिया. राजा पृथ्वीराज चौहान सहित सभी लोग ख्वाजा से क्षमा मांगने आये. काफी लोगो नें इस्लाम कबूल किया पर पृथ्वीराज चौहान ने इस्लाम कबूलने इंकार कर दिया. तब ख्वाजा नें भविष्यवाणी करी की पृथ्वी राज को जल्द ही बंदी बना कर इस्लामिक सेना के हवाले कर दिया जायेगा.निजामुद्दीन औलिया जिसकी दरगाह दिल्ली में स्थित हैं ने भी ख्वाजा का स्मरण करते हुए कुछ ऐसा ही लिखा हैं. बुद्धिमान पाठकगन स्वयं अंदाजा लगा सकते हैं की इस प्रकार के करिश्मो को सुनकर कोई मुर्ख ही इन बातों पर विश्वास ला सकता हैं.भारत में स्थान स्थान पर स्थित कब्रे उन मुसलमानों की हैं जो भारत पर आक्रमण करने आये थे और हमारे वीर हिन्दू पूर्वजो ने उन्हें अपनी तलवारों से परलोक पंहुचा दिया था. ऐसी ही एक कब्र बहरीच गोरखपुर के निकट स्थित हैं. यह कब्र गाज़ी मियां की हैं. गाज़ी मियां का असली नाम सालार गाज़ी मियां था एवं उनका जन्म अजमेर में हुआ था.उन्हें गाज़ी की उपाधि काफ़िर यानि गैर मुसलमान को क़त्ल करने पर मिली थी.गाज़ी मियां के मामा मुहम्मद गजनी ने ही भारत पर आक्रमण करके गुजरात स्थित प्रसिद्ध सोमनाथ मंदिर का विध्वंश किया था. कालांतर में गाज़ी मियां अपने मामा के यहाँ पर रहने के लिए गजनी चला गया. कुछ काल के बाद अपने वज़ीर के कहने पर गाज़ी मियां को
मुहम्मद गजनी ने नाराज होकर देश से निकला दे दिया. उसे इस्लामिक आक्रमण का नाम देकर गाज़ी मियां ने भारत पर हमला कर दिया. हिन्दू मंदिरों का विध्वंश करते हुए, हजारों हिन्दुओं का क़त्ल अथवा उन्हें गुलाम बनाते हुए, नारी जाती पर अमानवीय कहर बरपाते हुए गाज़ी मियां ने बाराबंकी में अपनी छावनी बनाई और चारो तरफ अपनी फौजे भेजी.

कौन कहता हैं की हिन्दू राजा कभी मिलकर नहीं रहे? मानिकपुर, बहरैच आदि के २४ हिन्दू राजाओ ने राजा सोहेल देव पासी के नेतृत्व में जून की भरी गर्मी में गाज़ी मियां की सेना का सामना किया और इस्लामिक सेना का संहार कर दिया.राजा सोहेल देव ने गाज़ी मियां को खींच कर एक तीर मारा जिससे की वह परलोक पहुँच गया. उसकी लाश को उठाकर एक तालाब में फ़ेंक दिया गया. हिन्दुओं ने इस विजय से न केवल सोमनाथ मंदिर के लूटने का बदला ले लिया था बल्कि अगले २०० सालों तक किसी भी मुस्लिम आक्रमणकारी का भारत पर हमला करने का दुस्साहस नहीं हुआ. कालांतर में फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अपनी माँ के कहने पर बहरीच स्थित सूर्य कुण्ड नामक तालाब को भरकर उस पर एक दरगाह और कब्र गाज़ी मियां के नाम से बनवा दी जिस पर हर जून के महीने में सालाना उर्स लगने लगा. मेले में एक कुण्ड में कुछ बेहरूपियें बैठ जाते हैं और कुछ समय के बाद लाइलाज बिमारिओं को ठीक होने का ढोंग रचते हैं. पुरे मेले में चारों तरफ गाज़ी मियां के चमत्कारों का शोर मच जाता हैं और उसकी जय-जयकार होने लग जाती हैं. हजारों की संख्या में मुर्ख हिन्दू औलाद की, दुरुस्ती की, नौकरी की, व्यापार में लाभ की दुआ गाज़ी मियां से मांगते हैं, शरबत बांटते हैं , चादर चदाते हैं और गाज़ी मियां की याद में कव्वाली गाते हैं .कुछ सामान्य से १० प्रश्न हम पाठको से पूछना चाहेंगे.

१.क्या एक कब्र जिसमे मुर्दे की लाश मिट्टी में बदल चूँकि हैं वो किसी की मनोकामना
पूरी कर सकती हैं?

२. सभी कब्र उन मुसलमानों की हैं जो हमारे पूर्वजो से लड़ते हुए मारे गए थे, उनकी कब्रों पर जाकर मन्नत मांगना क्या उन वीर पूर्वजो का अपमान नहीं हैं जिन्होंने अपने प्राण धर्म रक्षा करते की बलि वेदी पर समर्पित कर दियें थे?

३. क्या हिन्दुओ के राम, कृष्ण अथवा ३३ करोड़ देवी देवता शक्तिहीन हो चुकें हैं जो मुसलमानों की कब्रों पर सर पटकने के लिए जाना आवश्यक हैं?

४. जब गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहाँ हैं की कर्म करने से ही सफलता
प्राप्त होती हैं तो मजारों में दुआ मांगने से क्या हासिल होगा?

५. भला किसी मुस्लिम देश में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, हरी सिंह नलवा आदि वीरो की स्मृति में कोई स्मारक आदि बनाकर उन्हें पूजा जाता हैं तो भला हमारे ही देश पर आक्रमण करने वालो की कब्र पर हम क्यों शीश झुकाते हैं?

६. क्या संसार में इससे बड़ी मुर्खता का प्रमाण आपको मिल सकता हैं?

७. हिन्दू जाती कौन सी ऐसी अध्यात्मिक प्रगति मुसलमानों की कब्रों की पूजा
कर प्राप्त कर रहीं हैं जो वेदों- उपनिषदों में कहीं नहीं गयीं हैं?

८. कब्र पूजा को हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल और सेकुलरता की निशानी बताना हिन्दुओ को अँधेरे में रखना नहीं तो क्या हैं ?

९. इतिहास की पुस्तकों कें गौरी – गजनी का नाम तो आता हैं जिन्होंने हिन्दुओ को हरा दिया था पर मुसलमानों को हराने वाले राजा सोहेल देव पासी का नाम तक न मिलना क्या हिन्दुओं की सदा पराजय हुई थी ऐसी मानसिकता को बनाना नहीं हैं?

१०. क्या हिन्दू फिर एक बार २४ हिन्दू राजाओ की भांति मिल कर संगठित होकर देश पर आये संकट जैसे की आंतकवाद, जबरन धर्म परिवर्तन,नक्सलवाद,बंगलादेशी मुसलमानों की घुसपेठ आदि का मुंहतोड़ जवाब नहीं दे सकते?

आशा हैं इस लेख को पढ़ कर आपकी बुद्धि में कुछ प्रकाश हुआ होगा . अगर आप
आर्य राजा राम और कृष्ण जी महाराज की संतान हैं तो तत्काल इस मुर्खता पूर्ण
अंधविश्वास को छोड़ दे और अन्य हिन्दुओ को भी इस बारे में प्रकाशित करें.